रविवार, 18 नवंबर 2012

'मॉं का जन्‍मदिन...' ( बच्‍चों के लिए कुछ कवितायें )





  माँ  तेरा क्या  जन्मदिवस है !



 माँ का जन्मदिन

भारतीय ज्ञानपीठ से वर्ष 2004 में प्रकाशित कविता संग्रह 'कोई नया समाचार' को विशेष रूप से चर्चा एवं सराहना प्राप्त हुई और कुछ सुधी साहित्य मर्मज्ञों ने इसे सूर के बाद बचपन को कविता का वैभव बनाने वाला अपनी तरह का अनूठा प्रयास माना उस संग्रह की सारी कवितायें दरअसल बच्चों के माध्यम से इस जीवन जगत के व्यापक फलक को स्पर्श करती कवितायें हैं फिर खयाल आया कि बच्चों के बहाने तो इतनी कवितायें रचीं, कुछ ऐसी कवितायें लिखी जायें जो बच्चों के लिए हों यों भी, बच्चों के लिए अच्छे साहित्य के निर्माण का पुण्यकर्म हर प्रतिबद्ध और गंभीर साहित्यकार का महत् कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व होता है उसी प्रयास का फल हैं ये कवितायें -  'माँ का जन्मदिन' इन कविताओं के लिए खास तौर पर आठ पंक्तियों के एक विशिष्ट शिल्प के संधान के साथ साथ यह भी कोशिश की है कि ये उतनी ही जीवंत और इन्दधनुषी हों जितना और जैसा स्वयं बचपन...। और अब इंतजार है कि ये शीघ्र ही एक यादगार बाल कविता संग्रह के रूप में सामने  आयें !

- प्रेम रंजन अनिमेष

(1)
माँ का जन्मदिन


माँ  तेरा क्या  जन्मदिवस है
अभी  तुम्हारा  कौन बरस है

याद तुम्हें  तो है इतना कुछ
याद नहीं है क्यों अपना कुछ

मैं तो  पहले थी इक चिड़िया
साथ तुम्हारे  जन्मी  यह माँ

याद  मुझे  इतना ही  बस है
एक  हमारा   जन्मदिवस  है

                                                            (2)

                                                      सयानापन

  
पानी कम है  खरचा मत करना
अपने दुख का चरचा मत करना

हाथ किसी आँचल में मत पोंछो
सोचो जब  सबका अच्छा सोचो

रूखा  सूखा जो  मन से खाना
दिन भर खटना शाम ढले गाना

सच के घोड़े  बेचा  मत करना
सोकर  सपने  बाँचा मत करना


(3)
पौधा


बाहर  इक   नन्हा  पौधा  है
बिना  लगाये   उग  आया है

छोटी सी  इसकी  है  फुनगी
जिस पर ओस चमकती रहती

शाम काम से जब तुम आओ
बच्चों  को  आवाज  लगाओ

बोलो  इससे  भी   सुनता है
प्यार मिले  तो  खुश होता है

(4)
चाय


रखी  पियाली भर कर चाय
खड़ा मगर वह शीश झुकाय

पत्ती   डाली   चीनी  डाली
दूध मिलाया  दे कर  छाली

कहता  दूर  पहाड़ों  को दो
गन्ने के  उन खेतों  को दो

कहता  पहले  पी  ले  गाय
उसके बाद  पियें  हम  चाय

(5)
धुनिया


मौसम सा  यह साज पुराना
जीवन सा  है  इसे  बजाना

खुद गाता हूँ  खुद सुनता हूँ
अपनी धुन खुद ही धुनता हूँ

सर्द  समय है  पास बुलाता
मुझको कहीं  कपास बुलाता

कहता  आगे  बढ़ा  जमाना
छेड़ो   कोई   नया  तराना

(6)
मोटी रोटी


दादी  की  यह  मोटी  रोटी
छूछी  भी लगती  है  मीठी

गेहूँ  मकई  चना  मिला है
घर की  चक्की का आटा है

उपलों  पर  इसको सेंका है
सत कुछ  बूढ़े  हाथों का है

जैसे  जीवन   जैसे  माटी
सोंधी  सोंधी  लगती  रोटी

(7)
दीमक


बोलो  बोलो   प्यारे  लेखक
कौन  तुम्हारा  पहला पाठक

पहले  मन में  कुछ गढ़ता हूँ
फिर उसको  खुद ही पढ़ता हूँ

तब जाकर  लिखना  होता है
दुनिया को  दिखना  होता है

सिर्फ  जानता  इतना लेखक
दीमक उसका  अंतिम पाठक

(8)
अलस


मैं  तो राजा  तू  भी  रानी
कौन  भरे  गगरी में  पानी

गगरी खुद जाये पनघट तक
भरकर जाये  चौखट तक

लेकिन  गगरी  कौन झुकाये

कोई  आये   और   पिलाये

पानी  की   देखो  मनमानी
सूखे  होंठ   आँख में  पानी

(9)
टमटम


गाड़ी  जिस को खींचे  घोड़ा
हमने  उस पर चलना छोड़ा

रोता  रहता   इक्के  वाला
मैंने  वचन  उसे  दे  डाला

तेरा   इक्का   ले  जाऊँगा
कल सूरज  इस पर लाऊँगा

खुश हो  उसने  घोड़ा  जोड़ा
खाया  और  खिलाया  थोड़ा

(10)
गुपचुप


नजर लगी थी सबकी छुपछुप
गुपचुप गुपचुप  खाया गुपचुप

गुपचुप  फूटा  कर के  हल्ला
मुँह में उमड़ा  रस का कुल्ला

उस  कुल्ले  को  रहे  दबाये
आँखों  में  आँसू  भर  आये

फिर  सबसे  जायेंगे  छुपछुप
गुपचुप  फिर खायेंगे  गुपचुप

(11)
माचिस


नन्ही गुमसुम  सीधी सादी दिखती माचिस
अपने भीतर आग छुपा कर रखती माचिस

कहती है  लौ  हूँ मैं  जलती  जो  दीये में
हूँ वह  आँच  जला करती है  जो चूल्हे में

सहल बहुत है यहाँ वहाँ  बस आग लगाना
लेकिन मुश्किल अपने दिल में आग जुगाना

हर  छूने वाले के  हाथ  निरखती  माचिस
दो  कौड़ी की है  पर हमें  परखती माचिस

 (12)

 डाक



चुहिया इक दिन  गयी डाकघर
बड़े  लिफाफे में  जा छुप कर

दे  डाले   कुछ  प्यारे  बच्चे
खत पहुँचा  तो  वे भी  पहुँचे

पत्र  सँभाले   चला  डाकिया
था वह जिसका  उसे दे दिया

पाने वाले   इसको   पढ़ कर
देना  तुम   जल्दी  से  उत्तर

                                                          (13) 

 छड़ी



छड़ी  पुरानी  है पर  सुंदर
दादाजी  चलते  हैं   लेकर

हरदम  साथ  लगी रहती है
चलते बात  किया  करती है

सोचूँ  उनके  सो  जाने पर
ले आऊँ  यह छड़ी उठा कर

ऊबड़ खाबड़ जीवन पथ पर
चलूँ उन्हीं की छड़ी टेक कर

(14)
जुगाली


करती   भैंस  जुगाली  है
समय अभी कुछ खाली है

भर  जाता है  जब भीतर
धीरे   धीरे   ला   बाहर

अच्छी  तरह  मिलाती  है
रसमय   उसे  बनाती  है

यह  भी  सोच  निराली है
करना  याद   जुगाली  है

(15)
पहेली


मन  से  एक  पहेली  रचना
कोई   नयी   नवेली  रचना

सब  जिसको  सुलझाना चाहें
समझें  औ'  समझाना  चाहें

हारे  नहीं   नहीं  जो  बूझा
सोचे   किसको  कैसे  सूझा

ऐसी  अजब   पहेली  रचना
दुनिया   रंग  रँगीली  रचना

(16)
अलाव


शीत  बहुत है  तो  मत काँपो
थोड़ी  आग  जला  कर  तापो

चुन कर लाओ जो कुछ बिखरा
फिर उसको  लह लह दो लहरा

आँच  सेंत  लो  इन  हाथों में
बचा  रखो  उसको   बातों  में

बैठ  अकेले   दुख  मत  जापो
मिल कर  जीवन  राग  अलापो

(17)
जीवन जल


आया  सावन  बरसा सावन
भर कर रख लो सारे बरतन

धरती  इतना  हिस्सा पानी
इस तन में भी कितना पानी

भीतर उमगे  बाहर  छलके
बिना गरज  आँसू बादल के

पानी में बजती  यह धड़कन
पानी पर  चलता यह जीवन

(18)
चिट्ठी


इस  दुनिया की  पहली  चिट्ठी
तिनकों ने  पत्तों पर  लिक्खी

बाँध दिये कुछ  चिड़ियों के पर
उसे  ले  गयी  हवा  उड़ा कर

औरों को लिख  खुद को पढ़ना
खत लिखना  रिश्तों को गढ़ना

यह  दुनिया  परिवार  एक ही
दिल से  दिल को  भेजो चिट्ठी

(19)
अखबार


सुबह  सुबह   आता  अखबार
खुलता है  दुनिया  का  द्वार

कहाँ कहाँ  क्या क्या घटता है
क्या छुपता अब सब छपता है

पन्ने   पन्ने   भरे   हादसे
पढ़कर फिर दिन  गुजरे कैसे

देख  सकेंगे  क्या  इक बार
खुश  खबरों वाला   अखबार

(20)
चप्पल


देखो  कैसी  है  यह चप्पल
नयी नयी ली है यह चप्पल

चप्पल डाले  सँभले  चलना
बढ़ना आगे  नहीं  फिसलना

जो  बेमेल  कहें  कहने  दो
चले  चलो उनको  तकने दो

एक पाँव में  पहने  यह पल
एक पाँव में  पहने  वह पल

(21)
शीशा


झाँक  सभी  आँखों में  देखा
हर कोई  इक  चलता  शीशा

पड़ती  धूप   चमकता  कोई
अपने  पार   झलकता  कोई

सबसे कुछ  सीखा जा सकता
सबमें खुद  देखा  जा सकता

आईना  तो  सच  ही  कहता
पर उसका सच उलटा दिखता

(22)
दर्जी 


कपड़े  सिल  दे  जाना  दर्जी
वादा  किया   निभाना  दर्जी

तन की  अच्छी नाप मिलाना
अपना  उम्दा  हुनर  दिखाना

सिलना  ऐसा  सबको  भाये
फिर भी  नजर  अनूठा आये

जल्दी  से   दे  जाना  दर्जी
होना   हमें   रवाना   दर्जी

(23)
मछली


मछली मछली कितना पानी
क्या है  सारा  अपना पानी

पानी   तेरे   भीतर  बाहर
पानी   तेरा   रूप उजागर

पानी  में   तू  साँसें  लेती
पानी  पीती   पानी  जीती

आँखों में कुछ  रखना पानी
आँखों का  है  सपना पानी

(24)
मेल


भाई  भाई   नहीं  लड़ाई
वरना होगी  कान खिंचाई

मेल जोल है  जिनमें एका
उनका रस्ता किसने छेंका

आपस में गर  फूट पड़ेगी
सारी दुनिया  लड़े भिड़ेगी

होगी  चारों  ओर  हँसाई
देखो  कैसी  ताल मिलाई

(25)
कहानी


नानी    होगी   तुम्हें   सुनानी
नयी  नयी   हर  रोज  कहानी

नानी   तुम   सरकाओ  घूँघट
इक किस्सा है इक इक सिलवट

आँचल  से   कुछ  धागे  तोड़ो
उनसे  ही  फिर  किस्से  जोड़ो

होगी   जितनी   बात   पुरानी
होगी   उतनी   नयी   कहानी