'अखराई' में इस बार आपके लिए
प्रस्तुत कर रहा अपनी एक रचना ‘फिर भी होना बचा रहेगा’ ! लिखी तो यह पहले थी मगर वर्तमान परिस्थितियों में अत्यंत प्रासांगिक
है । तो इस नववर्ष में अशेष शुभकामनाओं के साथ सोचा इसे साझा करूँ
आप सबसे ! विश्वास है पसंद आयेगी । इसी की सुरुचिपूर्ण संगीतमय दृश्य-श्रव्य प्रस्तुति
का आनंद आप इस लिंक पर भी उठा सकते हैं :
https://www.youtube.com/watch?v=HqtSDyDXOc8
पुनः शुभकामनाओं के साथ
~ प्रेम रंजन अनिमेष
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फिर भी होना...
फिर भी होना बचा रहेगा
हँसना रोना
बचा रहेगा
माँ के हाथों के खाने का
स्वाद सलोना बचा रहेगा
चाहे बचपन नेह का माखन
जी भर दो ना बचा रहेगा
भर जायेगा दिल ये फिर भी
कोई
कोना
बचा रहेगा
हो जाओगे सारे जग के
अपना होना बचा रहेगा
सपना तो है सच आँखों का
हो या हो ना बचा रहेगा
हो जाये जो प्यार में सब कुछ
क्या अनहोना बचा रहेगा
कहीं नज़र भर रखो सँजो कर
रूप
सलोना बचा रहेगा
आँखों आँखों में जो चलता
जादू
टोना बचा रहेगा
बासी मुँह उस रस मिसरी का
भोर उठौना
बचा
रहेगा
कह कर फिर रह जायेगा क्या
दिल में रखो ना बचा रहेगा
पाकर ख़ुश रह पाओगे क्या
फिर बस खोना बचा रहेगा
हाथ का मैल है जब तक सब कुछ
माँजना धोना बचा रहेगा
ख़ाली खेतों खलिहानों में
खड़ा डरौना बचा रहेगा
खो जायेंगे
खेलने वाले
और खिलौना बचा रहेगा
आँसू हुए पराये फिर तो
ख़ुद को रोना बचा रहेगा
सुख के पत्ते के दोने में
दुख का लोना बचा रहेगा
आँचल ममता का है जिस पर
हो जो होना बचा रहेगा
भूलो मत मिट्टी को आख़िर
यही बिछौना बचा रहेगा
जब तक हैं 'अनिमेष' ये आँखें
ख़्वाब सँजोना बचा रहेगा
प्रेम रंजन अनिमेष