‘माँ के साथ’ ~ अपने इस अप्रकाशित कविता
संग्रह से दो अप्रकाशित कवितायें प्रस्तुत की थीं पिछले महीने, लोगों ने जिन्हें पढ़ते सराहते यह आग्रह किया कि कुछ और
कवितायें वे उस प्रस्तावित संग्रह से पढ़ना चाहेंगे । तो पढ़ने सराहने और स्नेह देने
के लिए आभार व्यक्त करते हुए अपनी एक और अप्रकाशित कविता आपके समक्ष रख रहा हूँ उस
संग्रह की पांडुलिपि से ।
~ प्रेम रंजन अनिमेष
जीवन स्पंदन
अभी
उस ओर
महसूस
होता अभी इधर...
गर्भकुंभ
के भीतर
डग
भर रहा नन्हा
चला
रहा अपने पैर
शुरू
हो चुका
जीवन
के नये आगंतुक का सफर
उत्सुक
भविष्य
खोलना
चाहता द्वार
दुनिया
देखना चाहता
और
दुनिया उसे
पगथलियों
की यह थाप
आने
वाले कल की दस्तक
जन्म
सफल
हो
जाता
जीवन
धन्य
जननी
का
सहते
आगत सुख के
ये
आघात
अहरह
प्रार्थना
करती वह
जोड़े
कर
ओ
स्रष्टा ओ ईश्वर
हे
शाश्वत हे नश्वर
इस
नौनिहाल इस नये यात्री
हृदय
के इस टुकड़े को
जीवन
के पथ पर
कभी
कहीं न लगे ठोकर...!