सोमवार, 15 फ़रवरी 2016

यह वसंत



वसंतपंचमी आयी । और यह कविता दे गयी ! उसका गुलाल सिर आँखों पर...





                                        ~ प्रेम रंजन अनिमेष


यह वसंत


                                   


फिर आयी वसंतपंचमी


माँ मैं तुम्हारा लाल
देखो रख रहा गुलाल
तुम्हारे पैरों पर


आशीष में
उसी गुलाल का
लगाया करती तुम टीका
मेरे माथे पर


माँ
सिर झुकाये खड़ा
मैं प्रतीक्षा कर रहा...