बुधवार, 26 जून 2019

सवाल





'अखराई'  में  पिछली बार अपनी कविता
'क्यों साझा की थी अपने आने वाले कविता संग्रह
 'प्रश्नकाल शून्यकाल'  से 
जिसकी अनेक कवितायें
'दस्तावेज़' के नये अंक (161) में आई हैं और बहुत ही सराही गई हैं
कई लोगों ने आग्रह किया है  इसकी और कवितायें साझा करने के लिए
तो प्रस्तुत है  
'प्रश्नकाल शून्यकाल'   शृंखला की  
एक और कविता 'सवाल' 


                                               प्रेम रंजन अनिमेष 

सवाल 


µ                                         



दुनिया की अनगिनत मुश्किलें 
ढूंढ़ रहीं कबसे अपना हल 


और नहीं पातीं 
तो करतीं एक सवाल



बुरे हुए जो 
खैर उन्होंने 
अपनों का अपने जैसों का 
भरसक भला किया 



अच्छा कहलाने वालों ने 
अच्छाई का सच्चाई का 
भोले भाले भले भलों का 
सच में कहो किया क्या... ?

                                     ~ प्रेम रंजन अनिमेष