प्रकाशपर्व की ढेर सारी शुभकामनायें !
'अखराई' में इस बार प्रस्तुत
कर रहा अपनी यह कविता 'दीवाली इस बार'
~ प्रेम रंजन अनिमेष
दीवाली इस बार
µ
कैसे मने कहीं
त्यौहार
मंडी में मंदी की
मार
घर तक आ पहुँचा
बाज़ार
फिर भी मिलता न
ख़रीदार
दीवाली से दिये
फ़रार
गाँव नगर हर चौखट
द्वार
धुआँ धुआँ सुलगे
अख़बार
जैसे दुखिया सब
संसार
रोज़गार ना कारोबार
कहीं नक़द ना कहीं उधार
मचा हर तरफ़ हाहाकार
जन गण मन कितना
लाचार
पौ बारह उसके हर बार
पासे फेंक रही सरकार
अच्छे दिन के हैं
आसार
बाँचें तब तक गीता
सार....
प्रेम रंजन अनिमेष