मंगलवार, 1 जनवरी 2013

नये साल पर...


                


            
नया साल : कुछ वही सवाल


नया साल नयी उमंग और नये उत्साह भरता है और नये संकल्प से जोड़ता है लेकिन हमेशा और हर किसी के साथ ऐसा हो जरूरी नहीं जश्न के दिनों का एक दूसरा पक्ष भी होता है जो कई बार अनदेखा रह जाता  कभी किसी नये साल पर कुछ ऐसे ही ख़याल दिल में आये थे जो कहीं आज के हालात को उतनी ही सच्चाई से बयान करते हैं... या शायद और भी अधिक
                            - प्रेम रंजन अनिमेष
                              
       
नया   साल  है
गया  हाल   है

जले  हैं  चावल
गली   दाल  है

चेहरा     चेहरा
इक   सवाल है

दर  दर  फिरते
घर   मुहाल  है

दिल ये  पेट पर
फिर   बहाल  है

हर  रिश्ते   का
इस्तेमाल     है

सड़क  पर  ईमां
बेख़याल      है

पॉंव   हैं  उखड़े
ग़ज़ब   चाल  है

लदी   शाख़  यूँ
बेसँभाल      है

जान   घटी   है
बढ़ा   माल   है

सब  के  बीच में
अब   दलाल  है

प्रश्नकाल     या
शून्यकाल     है

उसी  ख़ुदा   पर
फिर   बवाल  है

रोज़      धमाके
नित   धमाल  है

लौट  आये   घर
क्या   कमाल  है

बाढ़    देह   की
मन  का  काल है

पाकर  भी   सब
कुछ   मलाल  है

दुख से  अब तक
जुड़ी    नाल   है

बोले       बोली
क्या   मजाल  है

ग़ज़ल ये 'अनिमेष'
इक   मशाल   है



( 2 )

हमको  मतलब   हाल  बदलने से
क्या  होता  है  साल  बदलने  से

बदला  कुछ  तो  ग़ुर्बत  के  मारे
और   हुए   कंगाल   बदलने  से

ख़्वाबों ख़यालों  की  रंगत  बदली
रहा  पेट    चांडाल   बदलने  से

धार   चढ़ाते   हथियारों  पर  वे
और हम  खुश हैं  ढाल बदलने से

नया  जवाब  मिलेगा  क्या  देखें
थोड़ा  बहुत   सवाल   बदलने से

प्यार  नहीं खो  देता  है पहचान
तन  के  खत्तो-खाल  बदलने  से

सोच  रहे  हैं  बच्चे  कुछ  होता
शायद   पहले   नाल  बदलने से

अंदर  की   हैवानी  जस की तस
बदला  क्या  है  खाल  बदलने से

सुर  क्‍या  सँभलेगा  इन शोरों में
बदली  लय भी  ताल  बदलने से

मुड़े भला कब हवा के रुख़ 'अनिमेष'
बस  नावों  के   पाल  बदलने  से