देश
और विश्व कोरोना प्रसार के वर्तमान संकट से यथाशीघ्र उबरे इस कामना और 'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे
सन्तु निरामयाः...' की
सनातन शुभेक्षा के
साथ 'अखराई' में इस बार प्रस्तुत कर रहा अपनी कविता 'आगत अनचिन्हार '
~ प्रेम रंजन अनिमेष
µ
आगत
अनचिन्हार
इसका रोना उसका रोना
खुद को रोना
इस दुनिया में पहले से था
कम क्या रोना
जो तुम आ गये कोरोना ?
आये हो
हमारी गति हमारी मति
यति नियति
अथ या इति
देख
करने के लिए
खबरदार
या किस मदहोशी से उबार
कहने बामुलाहिजा होशियार ?
तुम्हें तो यार
भी नहीं
कह सकते
ओ अनचिन्हार !
क्या अब तुमसे पाने को पार
या अपने कृत्यों कुकृत्यों से निस्तार
सहेजने को संसार
करने आत्मोद्धार
लेना होगा इंसान को
अपना ही अवतार
फिर एक बार...?
खुद को रोना
इस दुनिया में पहले से था
कम क्या रोना
जो तुम आ गये कोरोना ?
आये हो
हमारी गति हमारी मति
यति नियति
अथ या इति
देख
करने के लिए
खबरदार
या किस मदहोशी से उबार
कहने बामुलाहिजा होशियार ?
तुम्हें तो यार
भी नहीं
कह सकते
ओ अनचिन्हार !
क्या अब तुमसे पाने को पार
या अपने कृत्यों कुकृत्यों से निस्तार
सहेजने को संसार
करने आत्मोद्धार
लेना होगा इंसान को
अपना ही अवतार
फिर एक बार...?
प्रेम रंजन अनिमेष