बुधवार, 30 जून 2021

उत्तर जीवन

 

 

'अखराई' में इस बार प्रस्तुत कर रहा अपने आगामी कविता संग्रह  ' प्रश्नकाल शून्यकाल '  से  आज और आनेवाले कल को लेकर कुछ सोचने पर मजबूर करती और जरूरी सवाल उठाती एक कविता  ' उत्तर जीवन ' प्रख्यात रंगकर्मी एवं लब्धप्रतिष्ठ अभिनेता श्री राजेंद्र गुप्ता जी के भावपूर्ण स्वर में भी नीचे दिये गये  लिंक  पर क्लिक इसे सुना जा सकता है :

https://youtu.be/HCdO-1qLiT0

 

                                            ~ प्रेम रंजन अनिमेष

 

उत्तर जीवन

 

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क्या वही बचेंगे

इस दुनिया में 

जो सबसे ताकतवर 

तेज चतुर चालाक ?

 

या वे

जो सबसे

सीधे सादे

सहज उदार ?

 

क्या वही रहेंगे

इस निसर्ग में 

 

तीखे धारदार जिनके नाखून 

पंजे पैने 

दाँत नुकीले 

जो जितने हिंसक

क्रूर उतने ही

 

या वे

हृदय खुले जिनके

हाथ बढ़े

और होंठों पर 

निश्छल मुसकान ?

 

क्या वही

रहेंगे शेष

इस जहान में 

जिनकी खाल मोटी

जबड़े बड़े

और हवस भी

 

या वे

जो सोचते

समझते

महसूस कर सकते

पास जिनके 

भावना संवेदना ?

 

क्या मशीनी इस जमाने में 

वही टिकेंगे

जो सर्वाधिक 

जटिल परिष्कृत उन्नत

भौतिक यांत्रिक भावशून्य 

या कि उन्हें भी छोड़ कर पीछे

निकल जायेंगे आगे

उनसे भी होकर बेहतर खुद यंत्र 

और मानव मशीनों जैसे 

 

या बावजूद इन सबके  

जीवन की

संजीवनी भीतर सँजोये

वे जो जीवद्रव से तरल

जीवद्रव्य से जुझारू

और एक कोशिका से भी सरल ?   

 

क्या वही

वारिस होंगे

इस धरती के

पास जिनके

आसन पद

सत्ता प्रभुता

 

या कि वे

जिनके पास

कुछ नहीं 

रंगों ख़ुशबुओं 

और तान के सिवा ?

 

क्या वही बचेंगे 

जिनसे नहीं बचा कोई 

उन्हीं के हाथों होगी

बागडोर इस धरती की

खतरा जिनसे सबको  

 

अथवा वे

जो मिट्टी में 

बीज बन दबते रहे 

कोंपल बन उगते

जिनके हिस्से 

बस हवा में सूखते

पसीने सा सुख

फाकामस्ती

और पीर फकीरों की दुआयें  ?

 

क्या उन्हें ही

चुनेगी

जिंदगी

अपने को

आगे बढ़ाने के लिए 

 

जिनके कोश में 

हैसियत दौलत 

अस्त्र शस्त्र 

बारूद गारद

कवच बख्तरबंद 

 

या उन्हें 

जिनमें रातों की ओस

और आसरा दिन का  ?

 

महाप्रलय में 

क्या वही बचेंगे

डूबने से

जिनकी आँखें सूखी 

या वे 

जो भीतर तक भरे  ?

 

महामारी के उस पार

क्या होंगे वही आखिरकार 

उत्तराधिकारी पृथ्वी के 

 

जिन्होंने कभी 

अपने सिवा किसी को देखा नहीं 

न अपने अलावा 

भला किसी का सोचा 

कभी किया नहीं कुछ

किसी और के लिए 

बदी बुराई छोड़ 

 

या कि वे

जो सदा जिये औरों के लिए 

क्योंकि और था ही नहीं कोई 

नजर में उनकी अपने ही सारे

रखा हर एक को खुद से पहले 

क्योंकि लगा ही नहीं कभी कोई दूसरा 

 

कब तक रहेगी 

अनिर्णीत प्रकृति

कब तक अधर में झूलता 

अभिमत उसका  ?

 

फैसला जब आयेगा

किधर जायेगा

उधर जिधर हवाओं में जहर 

भरने वाले

मजबूर कर मजबूरियों का कारोबार करने वाले

 

या कि उस ओर

बचपन की किलक सा

मन जहाँ 

साफ इतना

कि और सप्राण हो जाये

प्राणवायु भी 

 

कोई छोटी सी चाकरी भी

खोजती तैयारी बड़ी

लेती साक्षात्कार कठिन  

 

मगर क्या अंततः होंगे सफल 

इस दुनिया में वही

नकारात्मक कुल अंक जिनके

हर परख में 

कुछ भी नहीं पास 

अंतरात्मा की 

मुट्ठी खोल कर दिखलाने के लिए

 

नहीं कुछ कहने भर को भी  

जब प्रश्न अंतिम आयेगा

कहो तुम्हें क्यों रहने 

दिया जाये यहाँ 

किसी के लिए तुमने कब कहाँ 

और किया ही क्या

होने से तुम्हारे किसी को भला

क्या फायदा  ?

 

चुनाव का समय आ गया

तो किसे चुनेगी कायनात

जो विजेता

या सृजेता ?

 

और क्या 

वह समय आ नहीं गया...?

                                                     ♻️          

( आने वाले कविता संग्रह ' प्रश्नकाल शून्यकाल' से )

                               

                                                                                       प्रेम रंजन अनिमेष

( यह कविता ख्यात अभिनेता व रंगकर्मी राजेंद्र गुप्ता जी के स्वर में नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक कर भी सुनी जा सकती है :  

https://www.youtube.com/watch?v=HCdO-1qLiT0   )