रंगोत्सव, फागुन और नवसंवत्सर की शुभेच्छा के साथ ' अखराई ' के पटल पर इस बार साझा कर रहा अपनी कविता ' जीवन रंग ' । आशा है पसंद आयेगी ।
*प्रेम रंजन अनिमेष*
जीवन रंग
( इतने रंग कितने रंग )
~ प्रेम रंजन अनिमेष
रानी धानी धूसर गंदुमी
चंपई गुलाबी टेसू केसर कचनार
जामुनी जाफरानी कत्थई
प्याजी फिरोजी...
कुछ देर सुनो
बातें औरतों की
और रंग जाने कितने
गूँजने लगते
प्रतिबिंबित परिलक्षित होते
संग अपने जीवन के
रस गंध आस्वाद लिये
खिलते खुलते
जबकि और सब लोग
स्याह सफेद में उलझे
भूल चुके बिसरा बैठे
नाम भी रंगों के
बस याद उन्हें
बेरंग बदरंग सी नफरत
जुल्म जंग और सियासत
इश्तेहार सौदेबाजी तिजारत
होड़ आपाधापी अफरा फरी मारामारी हर ओर
क्या केवल देखना
लहू जो बहा
किसका कितना ?
जो रंग खो गये
वे किन तितलियों के
सच के सपनों में
क्या उनके पर जिनके
दबे किताबों के पन्नों में
लौटायेगा कौन उन्हें
रखेगा किस तरह
आगत के लिए ?
स्त्रियाँ ही जानतीं
रंग जीवन के इतने
रंग जगत के
न जाने कितने
और जो दुनियादार
भ्रम जिन्हें कि वे ही
होशियार जानकार
रंगों से
जीवन से
अपने अपनों से
सच सपनों से
सच में
कितनी दूर... !
( आने वाले कविता संग्रह *' स्त्री पुराण स्त्री नवीन '* और *' अवगुण सूत्र '* से )
इसी कविता की विशेष दृश्य श्रव्य प्रस्तुति नीचे दिये गये लिंक पर देख सुन सराह सकते हैं :
*प्रेम रंजन अनिमेष*