रविवार, 22 अप्रैल 2018

माँ सी...





अखराई में इस बार साझा कर रहा अपनी यह कविता माँ सी...                          
                      ~ प्रेम रंजन अनिमेष 


माँ सी  




जन्मदिन है आज मेरा
और जन्म देने वाली नहीं
माँ चली गयी


माँ नहीं
है मासी
बड़ी
और छोटी


मझली मासी को गये
कई बरस हुए


सबसे छोटी
जो सुनते हैं सबसे
सुंदर थी
बह गयी धार में
मेरे जन्म के साल ही


आज सालगिरह मेरी


माँ होती
तो बार बार कहती
फोन लगाने के लिए
बारी बारी
कि दूर से ही सही
आशीर्वाद मिल जाये
सब बड़ों का
सब अपनों का


माँ नहीं
मासी से करता बात
दोनों खूब आशीष वारतीं
पर ध्यान नहीं आता
आज जन्मदिन मेरा


याद आ जाता
तो शायद माँ
इतना न याद आती


माँ सी हैं
माँ होकर
माँ के होने को
नहीं होना
होने देना
नहीं चाहती होंगी


रास्ते में
दिखती जिस पेड़ की
झुकी हुई शाखायें
गुजरता उसके नीचे से
सिर और झुकाये


कि उँगलियों की तरह
अपने पत्तों से
वे सिर मेरा सहला दें...!

                      ~ प्रेम रंजन अनिमेष