बुधवार, 17 अगस्त 2016

अबके सावन...





बड़ी दीदी के जाने के बाद यह दूसरा रक्षाबंधन है । उसे याद करते हुए यह छोटी सी कविता...

                       ~ प्रेम रंजन अनिमेष



अबके सावन...

 



क्या कहीं 
कोई आँख नम है ?


अबकी राखी में
मेरी कलाई पर 


एक धागा कम है...