नये वर्ष की शुरुआत में एक शुभ समाचार यह कि मेरा नया कविता संग्रह ' अँधेरे में अंताक्षरी ' प्रकाशन संस्थान, नयी दिल्ली से छप कर आ गया है । हाल ही में संपन्न विश्व पुस्तक मेले में इसका लोकार्पण हुआ ।
इसी संग्रह से इस बार यह कविता ' हामिद का चिमटा ' माँ को स्मरण करते हुए और उसे ही समर्पित । आज माँ को गुजरे छह महीने हो गये । वह होती तो कितनी प्रसन्न होती यह किताब देख कर और कितने आशीर्वचन कहती ! आशीष तो खैर उसका अब भी साथ है और हमेशा रहेगा...
~ प्रेम रंजन अनिमेष
हामिद का चिमटा
संगत का
साथी हो सकता है
यह
औखत पर औजार
फकीर का मँजीरा
सिपाही का तमंचा
सबसे सलोना
यह खिलौना
जो साबुत रहेगा
अंधड़ पानी तूफान में
सहता सारे थपेड़े
कविता मेरे लिए
तीन पैसे का चिमटा
है
जिसे बचपन के मेले
में
मोल लिया था मैंने
कि जलें नहीं रोटियाँ
सेंकने वाले हाथ
कि दूसरों को दे
सकूँ अपने चूल्हे की
आग !