'अखराई' पर इस बार साझा कर रहा अपने आगामी कविता संग्रह ‘ नयी कवितावली ’ से एक बानगी ‘ कविताई ’
यदि सोच में
हो सच्चाई
और भावों की
गहराई
तो इससे क्या
अंतर पड़ता
हो पाई
या नहीं
ठीक से
शब्दों की
तुरपाई
आई
या कि नहीं
चतुराई
कविता में
कितनी
कविताई ?
फिर सादगी
कहन की ही
बन जाती अच्छाई
एक हृदय भरा
कर देता
काफी कुछ की
भरपाई
कहते
कविता जिसे
मुई
है दुख की
जाई
यही बहुत
जो साध सके
आखर दो ढाई
क्षमा करें
जो यह लरिकाई
सुजन सभा को
नहीं सुहाई ...
✍️ प्रेम रंजन अनिमेष