गुरुवार, 31 अगस्त 2023

उठान..

 

'अखराई' के इस भाव पटल पर इस बार साझा कर रहा हूँ अपनी कविता उठान   इसे मेरे प्रकाश्य कविता संग्रह  ' नींद में नाच ' में संकलित कविता ' उत्थान ' की अगली कड़ी के रूप में देखा जा सकता है । ' उठान मेरे कविता-क्रम ' स्त्री पुराण स्त्री नवीन ' का हिस्सा है, जो आप सबकी शुभेक्षा से संभवतः आगे कभी पुस्तकाकार प्रकाशित हो

                                                       ~ प्रेम रंजन अनिमेष

 

उठान
 
µ 

                                            
पहले उसकी
पलकें उठीं
फिर चेहरा पूरा
 
उसके बाद
वह खड़ी हो गयी
पैरों पर अपने
एड़ियों पर उचकी
 
और हाथ बढ़ाये
छूने के लिए 
आसमान के चाँद सितारे
 
देखा सबने
देखते देखते
कद उसका
लगा बढ़ने 
 
परुष पुरुष को 
बरदाश्त कहाँ 
स्त्री का
अपने से ऊँचा उठना
 
कौन जाने
क्या कर बैठे
ऐसे में 
 
आदमी वो
जो हो ही नहीं 
औरत न हो तो
 
हो भी
तो रह न पाये
 
बना बसा कर
स्त्री अगर नहीं बचाये...
 

         µ         

 

                    ✍️ प्रेम रंजन अनिमेष