29 जुलाई...! गये बरस इसी दिन माँ विदा हो गयी । अंजुल
भर अक्षर पुष्पों के साथ उसे स्मरण और नमन करते हुए इस बार यह कविता ‘मातृपक्ष’ अपने आने वाले कविता संग्रह ‘माँ के साथ’ से...
~ प्रेम रंजन अनिमेष
मातृपक्ष
शुक्ल पक्ष
कभी
कृष्ण पक्ष
कितने
पक्ष जीवन के
माँ
तुम्हारा
कोई
पक्ष नहीं
?
पिता का या
हमारा
जीवन ही सब कुछ
रहा तुम्हारा
पिता के जाने के बाद भी
पिता का तो
पितृपक्ष
माँ तुम्हारा कोई पक्ष नहीं ?
वह पक्ष भी जिसे पाख कहती थी तुम
या कि वह पाख जिसे पंख बोलते हम
बिना उड़ानों का आसमान
यह कैसा जीवन
जिसमें अपने लिए
नहीं कोई अरमान
धरती रही
करती रही
भरती रही
पितरों के लिए जीती कहीं
पुत्रों के लिए
इस दुनिया में
इतने पक्ष प्रतिपक्ष
माँ तुम केवल आँचल
माँ तुम केवल झरता वक्ष
माँ तुम केवल झरता वक्ष
नहीं कोई तुम्हारा पक्ष...?