बुधवार, 30 मार्च 2022

सुनवाई...

 

'अखराई' के इस भाव पटल पर इस बार साझा कर रहा प्रकाशन की प्रतीक्षा कर रहे अपने कविता संग्रह स्त्री सूक्त की पाण्डुलिपि से अपनी एक प्रिय कविता  सुनवाई  ! इसी कविता का डॉ. मनोरंजन प्रसाद सिंह द्वारा किये सुंदर वाचन का आस्वादन भी  नीचे दिये गये लिंक पर कर सकते हैं  :  

https://youtu.be/rewfTmEFD6o

                                 ~ प्रेम रंजन अनिमेष

 सुनवाई

 

µ


अजी सुनते हो !
उसने कहा
पर सुनने वाला 
कोई न था 
 
अजी सुनते होऽ
सारी उम्र 
वह कहती रही
बिना किसी सुनवाई
 
सुन रहे हो ?
यह कहते हुए 
नाम किसी का 
उसने लिया नहीं था
इसलिए कोई भी 
सुन सकता था
 
लेकिन किसी ने नहीं सुना
या सुन कर भी
अनसुना करना ही चुना
 
ऊँचे आसनों पर जमे
लोग ऊँचे
बहुत ऊँचा सुनते 
 
कविहृदय तो खैर
सुन सकते 
कलियों के 
फूल बनने की सरगोशी तक
मगर वे भी
अपनी अपनी
कहने में ही
रहे लगे 
 
कुछ कहने के लिए 
जब भी जैसे ही
होंठ उसके खुले
किसी ने रख दिये
उन पर होंठ
या फिर हाथ अपने
 
है कोई 
जो सुनेगा कहीं  ?
आवाज कबसे
गूँज रही
मानो प्रकाशवर्षों दूर 
तारों की रोशनी
 
क्या यह आवाज भी
उस रोशनी की तरह
किसी तक पहुँचेगी
देर से ही सही ?
 
सुनने की यह गुहार
बेकल पुकार 
आखिर किसकी 
 
आधी आबादी 
या पूरी जनता की 
 
जिसे इस
संज्ञाहीन संबोधन के सिवा
आगे कुछ कह पाने का
मौका ही नहीं मिला...

                                              🈴

( आने वाले कविता संग्रह ' स्त्री सूक्त' की पांडुलिपि से )

 दृश्य श्रव्य प्रस्तुति का लिंक :  https://youtu.be/rewfTmEFD6o


                       प्रेम रंजन अनिमेष