सोमवार, 31 जनवरी 2022

रचयिता

 

नववर्ष की शुभकामनाओं सहित  'अखराई' पर इस बार साझा कर रहा अपने  आगामी कविता संग्रह  संक्रमण काल की कवितायें' से  अपनी कविता ' रचयिता'   

                          ~ प्रेम रंजन अनिमेष              

रचयिता

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लोग उदास हैं 

इस समय

बेचैन दुखी 

डरे सहमे 

 

एक छोटी सी कविता लिखो

एक मीठी सी कविता लिखो 

 

जो दिल को छू जाये

छू लेता जैसे

सहज स्नेहिल आत्मीय 

किसी का हाथ

 

नहीं 

झूठ मत लिखो कोई 

 

सच झुक गया 

दब गया 

पूरी तरह

ईमान उठ गया 

आदर्श भूमिगत

अंतरात्मा अनुपस्थित 

 

यह भी

सही नहीं 

विभ्रम ही

 

धुंध धुआँसे बादल काले

लग सकते बड़े फैले

संभव है 

कुछ देर उजाले को 

रोक लें ढँक लें

 

लेकिन यह समय का फेर

नजर का फेर

 

सूर्य बड़ा होता

हमेशा उनसे

 

कोई  सच्ची सी कविता लिखो

कोई अच्छी सी कविता लिखो

 

जिससे सच्चाई पर

अच्छाई पर

भरोसा लौट आये

हमेशा के लिए 

यकीन करने को 

जी चाहे

 

ईंट को ईंट लिखो

पत्थर को पत्थर 

और यह भी 

कि वह नहीं ईश्वर 

 

लेकिन वहीं 

रुके नहीं 

कलम तुम्हारी

यह भी तो लिखे

कि है प्रकृति 

और जीवन में 

जीवंतता कहीं 

 

क्योंकि जो घट रहा

रचना करती

दर्ज बस उसे ही नहीं  

बल्कि वह भी तो

होना चाहिए जो

 

अक्षर को अक्षर से जोड़ती

अभावों में भाव ढूँढ़ती

कविता जिसमें 

कहा अनकहा ही नहीं

शब्दों के बीच 

धड़कता अर्थात

स्पंदित अनंत भी 

 

शेष रह गया जिसे 

जानना सुनना 

महसूस करना

 

जगबीती सही

पर लिखो ऐसे आत्मसात कर

कि उसमें अपनापन हो

सच को रचो

कि थोड़ा सपनापन हो

 

नयी नयी सी कविता लिखो

खिली खुली सी कविता लिखो 

 

जो किसी पाती सी पहुँचे

पास उनके 

जहाँ कुशल नहीं 

एक अरसे से

न कोई पूछने वाला ही...

       

                                           प्रेम रंजन अनिमेष