'अखराई' में इस बार अपने दूसरे कविता संग्रह 'कोई नया समाचार' की एक कविता 'मदद' प्रस्तुत कर रहा हूँ । भारतीय ज्ञानपीठ से वर्ष
2004 में प्रकाशित इस संग्रह की कवितायें बच्चों के बहाने जीवन जगत के विस्तृत फलक
के विविध आयामों को स्पर्श करती हैं । संग्रह को पाठकों ने बहुत पसंद किया और प्रकाशन
के कुछ ही वर्षों के भीतर यह 'आउट ऑफ प्रिंट' हो गया । तदुपरान्त कई लोगों ने आग्रह किया इसके लिए और ज्ञानपीठ तक भी अपना
निवेदन पहुँचाया । पुनर्मुद्रण के लिए मैंने भी बारहा गुजारिश की है और मंडलोई जी इस
बाबत आश्वस्त भी कर चुके हैं । उम्मीद रखें कि किताब का नया संस्करण जल्दी ही उपलब्ध
होगा । फिलहाल इस कविता का आस्वाद लें जो पाठकों को अत्यंत प्रिय है
~ प्रेम रंजन अनिमेष
मदद
µ
पाँच
साल की उम्र
पीठ
पर बस्ता
बस्ते
की उम्र उससे अधिक
टुक
टुक चला जा रहा था बच्चा
सड़क
को जलतरंग सा बजाता
कि खुल
गया उसके जूते का फीता
माँ
ने कहा था राह में
मदद
लेना किसी अच्छे आदमी से
वह सीधा
गया चौराहे पर
जहाँ
लिखा था प्रशासन आपकी सेवा में
सिपाही
ने बहुत दिनों से
बाँधा
नहीं था किसी बच्चे के जूते का फीता
सो देर
लगी उसे
ठिठका
रहा तब तक
चारों
तरफ का यातायात
किसी
बच्चे कि तरह
चाहता
हूँ मैं
ताकत
झुके तो इस तरह
रास्ता
रुके तो इस तरह !