मंगलवार, 27 अगस्त 2013

अनापत्ति प्रमाणपत्र


पिछले साल अगस्‍त के ही महीने में 'शुक्रवार' में यह कविता आयी थी और उसके बाद काफी समय तक लोगों के संदेश आते रहे । पढ़ने वालों से मिली अविरत सराहना और व्‍यापक प्रतिसाद ने एक बार फिर से अच्‍छी कविता की पाठकीयता के प्रति आश्‍वस्‍त किया था । एक तरह से उन सब लोगों के प्रति आभार के बतौर इस बार पुन: प्रस्‍तुत कर रहा हूँ अपनी यह कविता - 'अनापत्ति प्रमाणपत्र'

                       * प्रेम रंजन अनिमेष
                    
अनापत्ति प्रमाणपत्र
 

मैं इस ऐतिहासिक देश का जिम्मेदार नागरि‍क
ठीक ग्यारह बजकर पचपन मिनट पर
जब आदमी सबसे अधिक होशोहवास में होता
और घड़ी बेताब
यह घोषित करता हूँ

कि मुझे कोई आपत्ति नहीं

राजा के राजा
और प्रजा के प्रजा होने पर
अमीरों के अमीर
गरीबों के और गरीब बनते जाने से
रास्तों के चलते रहने
मंजिल के आने को लेकर

कोई आपत्ति नहीं है
अगर सब शांतिपूर्वक मिल बैठ लूट बाँट कर खायें
कोई किसी के आड़े आये
आये भी तो टकराये
अपनी ओर उँगली उठने पर ऊँचे आसनों पर बैठे हाकिम
औरों को अधिक अधम बतायें
कहीं से गुजर हो बिना एक हरी पत्ती दिखाये
अनैतिकता और अराजकता को शोभनीय पदों में सजाया जाये

क्या आपत्ति हो सकती है भला किसी को
यदि शब्दों से अर्थ छीन लिये जायें जैसे आदमी से अधिकार
काम से अधिक हों बेकार और हौसलामंदों से अधिक लाचार
कोने कोने चस्पाँ इश्तिहार और हर हरकत लगे प्रचार
जो कुछ घर में हो रहा हो हमेशा उसके लिए कोई बाहर का जिम्मेदार

नहीं कोई आपत्ति
न्यायालय हो जायें न्याय के नीलामघर
संसद बेमकसद बहसों का कोशागार
आदमी चलता फिरता संग्रहालय ऐतिहासिक भूलों का

नहीं कोई आपत्ति नहीं
भूखे खाली पीली सम्मान की रोटी खायें
शोहदों को अपना प्रतिनिधि बनायें
देश विश्व के मानचित्र पर उभरे सबसे बड़ा बाजार कहाये
प्यार इतना सहज कि चलते फिरते किसी के साथ किया जाये
और खुशी इस तरह सुलभ कि खोजते उसे चिकने चुपड़े अदाकार झोंपड़ों तक आयें
धर्म ऐसा सायादार कि उसकी आड़ में किसी पर किया जा सके प्रहार
गाड़ियाँ इतनी विलंबित कि प्लेटफॉर्म पर इंतजार हो सामूहिक त्योहार

आपत्ति नहीं अगर किसी को आपत्ति नहीं
आपत्ति नहीं किसी को हो भी तो
खुश हूँ प्रसन्न हूँ संतुष्ट आपत्ति नहीं जहाँ तक
मेरा सवाल है
मेरा सवाल नहीं तब भी कोई आपत्ति नहीं

मैं इस सुविधासंपन्न धैर्यवान महान देश का
मामूली नागरिक यह घोषणा करता
जिससे भी हो इसका वास्ता
हालाँकि किससे किसका वास्ता

प्रमाणपत्र तो पूरा हो गया
फिर भी फिर से दुहराता
मुझे कोई आपत्ति नहीं
यह घोषणा सुनी जाये सुनी जाये
प्रमाण इसे माना या माना जाये...