रविवार, 31 अक्तूबर 2021

यदि तुम दीप हो...

 

ज्योतिपर्व दीपावली की शुभकामनाओं के साथ 'अखराई' पर इस बार साझा कर अपनी कविता   यदि तुम दीप हो   

                                      ~ प्रेम रंजन अनिमेष

                                   µ

यदि तुम दीप हो

                                                    

यदि तुम दीप हो 

तो कभी न कभी

जागेगी तुममें लौ

 

कम नहीं इतना भी 

नेह इस जग में 

मिल जायेगा कहीं न कहीं 

तुम अपने आपको 

पात्र कर रखो

 

और उत्सुक ऊँची

बाती सी 

इच्छा शक्ति बलवती

 

फिर हवायें भी

बुझायेंगी नहीं 

सहेजेंगी 

लौ तुम्हारी 

 

और झुक आयेगा

आकाश तुम्हारी ओर

खिंचा और आलोकित 

तुम्हारी दीप्ति से

 

यदि तुम माटी का

दिया हो नन्हा सा

जुड़े रहेंगे इस तरह तुमसे 

तत्व पाँचों 

भरते अंजोर करते उजागर 

भीतर बाहर  

 

छोटी बाती 

बात बड़ी

यों बड़ा तो सबसे उजियारा ही

 

मगर फिर भी

झुक कर तनिक

पूछो दुर्गा से 

हुआ क्या ऐसा

कि आते आते दीवाली 

बनना पड़ा काली

 

और यह भी

कि दोनों ओर जो

सरस्वती और लक्ष्मी 

क्यों दो छोर सरीखी

देख पातीं नहीं कैसे

एक दूसरे को ?

 

जहाँ जाये एक

क्यों दूजे की पैठ नहीं 

तुम राह दिखा सकते

इनको

सबको

 

उजास दे सकते

प्रकाश दे सकते

आस 

और विश्वास दे सकते

घर संसार को

 

यदि तुम दीप हो

 

हो नहीं भी तो

हो सकते हो

इस दीपावली को

कि चाहे देर सही

मगर कहीं 

अंधेर नहीं 

 

हो जो ऐसा 

तो फिर सच्चा

सवेर सुवेर यही

 

और तुम उसे लाने वाले

सूरज रोज जगाने वाले

किरणों के बीज उगाने वाले

 

तुम जो

दीप हो...

                                                                        µ


                            प्रेम रंजन अनिमेष