आज़ादी के इतने
सालों बाद भी अपने देश में हिंदी दिवस मनाना पड़ता है यह अपने आप में एक बड़ी विडम्बना है ! हिंदी दिवस और
हिंदी पखवारे की धूम और गुबार के गुज़रने के उपरांत शायद यह सही समय है साझा करने के लिए ये कुछ काव्योद्गार - 'अखराई' में इस बार
~ प्रेम रंजन अनिमेष
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किसके माथे की
बिंदी है ?
इक दिन की ये
शादी 'अनिमेष'
बाक़ी दिन बांदी बंदी है
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अंग्रेज़ों ने
भारत छोड़ा
पर अब भी दौड़ रहा 'अनिमेष'
भारत में
अंग्रेजी घोड़ा
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गाँधी की खादी कहाँ अभी
बेगानी बोली में 'अनिमेष'
अपनी आज़ादी कहाँ अभी ?
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ज्यों राष्ट्रध्वजा ज्यों राष्ट्रगान
जन गण मन में गूँजे 'अनिमेष'
अपनी भाषा अपनी पहचान
प्रेम रंजन अनिमेष