रविवार, 29 सितंबर 2019

किसके माथे की बिंदी है ?



आज़ादी के इतने सालों बाद भी अपने देश में हिंदी दिवस मनाना पड़ता है यह अपने आप में एक बड़ी विडम्बना है ! हिंदी दिवस और हिंदी पखवारे  की धूम और गुबार के गुज़रने के उपरांत  शायद यह सही समय है साझा करने के लिए ये कुछ काव्योद्गार - 'अखराई'  में  इस बार  

            प्रेम रंजन अनिमेष  
  

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किसके माथे की बिंदी है ?

इक दिन की ये शादी 'अनिमेष'

बाक़ी  दिन बांदी बंदी है


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अंग्रेज़ों ने भारत  छोड़ा

पर अब भी दौड़ रहा  'अनिमेष'

भारत में अंग्रेजी घोड़ा


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गाँधी की खादी  कहाँ अभी

बेगानी बोली में  'अनिमेष'

अपनी आज़ादी  कहाँ अभी ?


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ज्यों  राष्ट्रध्वजा ज्यों  राष्ट्रगान

जन  गण  मन में  गूँजे  'अनिमेष'

अपनी  भाषा अपनी पहचान



 प्रेम रंजन अनिमेष