गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

जनमत



महाजनतंत्र में महाजनपर्व का मौसम फिर इक बार ! शुभकामनाओं मंगलकामनाओं के साथ  'अखराई'  में   इस बार  साझा कर  रहा  अपनी यह कविता  जनमत

                                                       प्रेम रंजन अनिमेष

जनमत
( अबकी बार यही दरकार  

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क्यों इतने बूढ़े बीमार लाचार
रास्तों पर पड़े बेआसरे बिन दवा बेइलाज
क्यों मासूम बच्चे दूध भात के बदले खाली कटोरा लिये
क्यों बिलखते छौनों को उघरी छाती से चिपकाये
माँयें हाथ फैलाये


क्यों इतने भूखे नंगे बेबस बेघर बेहाल...?


क्या अंधी है सत्ता व्यवस्था
नहीं उसे यह सब दीखता
हर गली सड़क नाके पर हर गाँव शहर जो सूरते हाल ?


फिर क्या मतलब ऐसे तंत्र का
क्या हक ऐसी किसी हुकूमत को बने रहने का


यह तो पहला काम होना चाहिए था
पहला संकल्प शपथग्रहण के बाद का
और वही बाकी रह गया ?


फिर किस मुँह से चले आये
समर्थन माँगने सिर उठाये ?


चुल्लू भर पानी दो इन्हें


यही अपना अभि‍मत
ध्वनिमत जनमत एकमत


और कोई मत
इन्हें दो मत
दो मत


सब सम्मत हिल मिल जुल कर इक सँग
करें अभय चिक्कार


धि‍क इनको धि‍क्कार
जनगण की जयकार 


अबकी बार
यही दरकार

क्या सबकी सहकार... ?