इस बार अपने नये कविता संग्रह 'बिना
मुँडेर की छत' से कविता 'दूधियापन’
आपके साथ साझा कर रहा हूँ । इस संग्रह को जिस तरह आप सबने हाथों हाथ
लिया है और अपना प्यार दिया है उसके लिए बहुत बहुत आभार ! यह
स्नेह सदाशयता इसी तरह बनाये रखेंगे …
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प्रेम रंजन अनिमेष
दूधियापन
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शीशे में
पहले पके केश की धवलता
देखकर खुशी होती
जैसे बचपन के मसूढ़ों
में
झलक पहले दूध दाँत की
या माँ के हृदय में
पहले दूध की बूँद का
आह्लाद
यहाँ से
शुरू हो रहा
जीवन नया...