दीपावली की शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ अपनी यह कविता ‘दीपदान’
~ प्रेम रंजन अनिमेष
दीपदान
दीवाली
आने पर
हम बचपन
में माँ का हाथ थामे
कुम्हारिन
के घर जाते
दिये
ले आते
जितने
ले आते वहाँ से
मिट्टी
दुआर पर गूँध उछाह में
उतने
बनाते सुखाते पकाते
दीवाली
की सांझ पूजा कर
नेह
भर भर
थाल
में सजा कर
माँ
देती दिये
हर देहरी
हर ताख
हर खिड़की
पर
रख आने
के लिए
घर की
हर कोठरी हर हिस्से
भीतर
हर कोने अँतरे में
सिल
पर जाँते पर ओखल पर
बाहर
दुआर पर
तुलसी
चौरे
इनार
पर
पीपल
के पास
बथान
पर
खलिहान
पर
और दूर
मंदिर मजार
और शाला
तक
हर जगह
याद से...
अब हम
बड़े हो गये
दुनिया
बहुत आगे बढ़ गयी पहले से
इतनी
कि दिये
नहीं रहे न ही नेह
सब सिमट
गए अपने अपने घरों में
बाहर
बाजार कर आते
केवल अपना द्वार सजाते...