पिछले दिन काम से लौटते
रास्ते में
मिली यह कविता
आज आपके सामने
रख रहा...
प्रेम रंजन अनिमेष
लौटते
हुए
◘
एक सीधी
सी बात है
जो भटकाती
मुझे
शाम
काम से घर
उछाह
में भर कर
लौटने
की एक वजह
कम हो
गयी है
रास्ता
तकती
दरवाजे
पर
अब माँ
नहीं
है तो
वह कहीं
वह है
हमारे साथ ही
सिर
पर उसी का तो हाथ है...!