रविवार, 29 नवंबर 2015

लौटते हुए

पिछले दिन काम से लौटते
रास्‍ते में
मिली यह कविता
आज आपके सामने
रख रहा...

                          प्रेम रंजन अनिमेष

लौटते हुए


एक सीधी सी बात है
जो भटकाती मुझे

शाम काम से घर
उछाह में भर कर
लौटने की एक वजह
कम हो गयी है

रास्ता तकती
दरवाजे पर
अब माँ नहीं

है तो वह कहीं
वह है हमारे साथ ही


सिर पर उसी का तो हाथ है...!