बिहार कई कारणों से जाना जाता
है... और माना भी । मैं चाहता हूँ वह इन अक्षरों और इनमें जो भाव अंतर्निहित हैं इनके लिए पहचाना
जाये ! 'अखराई’ में इस बार साझा कर रहा बिहार
पर रचित अपना यह गीत... या कहें ‘प्रदेशगान’~ ‘मुझमें
बसा बिहार...’~ जो
मुझे भी हौसला देता है...
~ प्रेम रंजन अनिमेष
मुझमें बसा बिहार
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माने कभी न हार
मुझमें बसा बिहार
भूमि बुद्ध की है यह न्यारी
गुरु गोविंद की धरती प्यारी
सींचे शुभ सुविचार
मुझमें बसा बिहार...
गंगा गंडक सोन
सरीखी
नदियॉं मीठे पानी
वाली
अमृत रस की धार
मुझमें बसा बिहार...
यही मगध की धरा
प्रतापी
कीर्ति अन्यतम जिसकी व्यापी
हर सरहद
के पार
मुझमें बसा बिहार...
राज्य त्याग कर राजाओं ने
सत्य अहिंसा शांति पथ चुने
अविरत पुण्य प्रसार
मुझमें बसा बिहार...
जय का जगा प्रकाश प्रखरतर
छेड़ क्रांति
संपूर्ण महत्तर
करे जगत उजियार
मुझमें बसा बिहार...
बोली में मिसरी घुलती है
सुर की हर धारा मिलती है
भावों का भंडार
मुझमें बसा बिहार...
कोई यहॉं न ऊॅंंचा नीचा
सबसे अपनापन का नाता
समरसता का सार
मुझमें बसा बिहार...
लोग परिश्रम करने वाले
सत के व्रत को वरने वाले
अपना सब कुछ वार
मुझमें बसा बिहार...
जोड़े मन के तार सभी
से
जाने करना प्यार सभी से
प्रेम मधुर संसार
मुझमें बसा बिहार...
सदा मेल का हाथ बढ़ाये
खुला हृदय है कोई आये
मानवता का द्वार
मुझमें बसा बिहार...
चले कहीं भी जायें चाहे
फैलाये ममता की
बॉंहें
करता अंगीकार
मुझमें बसा बिहार...
यात्रा यह ‘अनिमेष’ अनवरत
साझा यह विश्वास
अनाहत
सत्य स्वप्न साकार
मुझमें बसा बिहार...
~
प्रेम रंजन अनिमेष