गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

कोई मिलता है...





संगीत की बाकायदा तालीम ली नहीं कभी । या इस तरह भी कह सकते हैं कि कोई एक तयशुदा गुरू या उस्ताद रहा नहीं इसमें अपना । सुनते गुनते सीखता सहेजता रहा सबसे मन ही मन । कुदरत की देन मान सकते हैं कि मन मानस के भीतर जो छंदोबद्ध रचनायें आकार लेती हैं अकसर अपनी धुन भी साथ लिये । ऐसे ही सुबह तफरीहन गुनगुना रहा था अपनी यह रचना तो किसी ने कहा – लफ्ज तो सारे पड़े नहीं कानों  में । लेकिन लय के साथ पहुँचा जितना उसने छू लिया भीतर तक ! छलछला दिया । फिर अनुरोध कर सुनी गजल पूरी । सोचा इस बार साझा करूँ यही साथ आपके...

                            प्रेम रंजन अनिमेष


कोई  मिलता है  उम्र भर  के लिए  थोड़े ही
प्यार  होता  गुज़र  बसर  के लिए  थोड़े ही

ले के  जाती  हवा  जो  ख़ुशबू तेरी  जाने दे
ले के  जायेगी  अपने  घर के लिए  थोड़े ही

इक नयी सुबह भी बनानी हमें मिलकर दोस्त
साथ  अपना  है  रात भर  के लिए  थोड़े ही

क्या करोगे  सजा के  पलकों पे  मोती इतने
रह  गये  लोग  इस हुनर  के लिए  थोड़े ही

अनसुनी  ये  दुआयें  चुन ले  लबों से  अपने
आह  जो दिल में है  असर के लिए  थोड़े ही

चूमते  भौंरे  से  कहे  ये  कली   कानों  में
ऐसे  सपने  हैं  इस उमर  के लिए  थोड़े ही

मुझको पहुँचा के  जायेगा वो  कहाँ और कैसे
रास्ता  कोई   हमसफ़र  के  लिए  थोड़े  ही

मेरे दो आँसू  कल मिलें  जो किन्हीं आँखों से
है  ये  अख़बार  की  ख़बर के लिए  थोड़े ही

सब हैं  क़ानून की  नज़र में  बराबर  लेकिन
है  ये  क़ानून  हर बशर  के  लिए  थोड़े ही

हो मुहब्बत  या  ज़िंदगी  या कोई भी रिश्ता
रखना  सामान  हर सफ़र  के लिए  थोड़े ही

अपना घर फूँकने का  फ़न ये रहा  सदियों से
शायरी   लाल  या  गुहर  के  लिए  थोड़े ही

अपने  कांधों  पे  हैं  उठाये  हुए  फ़िक्रे जहां
कोई  कांधा है  अपने सर  के  लिए  थोड़े ही

आज जिस दौर से गुज़र रही दुनिया  'अनिमेष
राग  कोई  है  इस  पहर  के  लिए  थोड़े ही