सोमवार, 20 मई 2019

प्रश्नकाल शून्यकाल




'अखराई'  में  इस बार साझा कर  रहा  अपने आने वाले कविता संग्रह 'प्रश्नकाल शून्यकाल' से अपनी यह कविता  'क्यों'प्रश्नकाल शून्यकाल' में मन को मथती सवाल करती कवितायें हैं । इनमें से अनेक कवितायें हाल ही में दस्तावेज़ (अंक 161) में आई हैं और बहुत ही सराही गई हैं । तो साझा कर रहा उसी की एक बानगी

                              प्रेम रंजन अनिमेष 

क्यों


µ                                         

एक बात
समझ में नहीं आई


आँखों से भरे आसमान में
सतरंग सी छाई


धरती पर 
यहाँ से वहाँ तक
छाई की तरह बिछी
अच्छाई


फिर भी उस पर
हावी क्यों है
राई 
जितनी बुराई?


कह तू ही कुछ भाई


चुप है तू क्यों माई...?
                                                        ~ प्रेम रंजन अनिमेष