शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

चितायें

 

'अखराई' में साझा कर रहा अपनी हाल की एक कविता चितायें, जिसे आप सबने बहुत सराहा और स्नेह दिया है। शायद यह आपके मनोभावों संवेदनाओं को भी अभिव्यक्त कर सकी है  । प्रख्यात रंगकर्मी एवं लब्धप्रतिष्ठ अभिनेता श्री राजेंद्र गुप्ता जी के भावपूर्ण पाठ के जरिये भी यह कविता बहुतेरे कविता प्रेमियों तक पहुँची और प्रशंसित हुई है । राजेंद्र गुप्ता जी के स्वर में नीचे दिये गये  लिंक  पर क्लिक इसे सुना जा सकता है :

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10226054970145435&id=1372173311

तो आप सबका अतिशय आभार व्यक्त करते हुए प्रस्तुत कर रहा अपनी यह कविता  

                                                ~ प्रेम रंजन अनिमेष

चितायें

                                   

µ

( यह चित्रण पूर्णतः

कल्पना पर आधारित

और कौतुक का पात्र है

यथार्थ से इसका

दूर दूर तक

कोई संबंध

संयोगमात्र है )

 

पूरब से पश्चिम 

उत्तर से दक्षिण पर्य॔त

 

इस पुण्यभूमि पर

जल रहीं चितायें 

 

और जलाने के लिए उन्हें 

चल रहीं हवायें 

 

शोर न मचायें 

आवाज न उठायें

 

सिर झुकाये

कृपया शांति रखें बनाये

 

लकड़ियाँ कम न पड़ें

इसलिए पेड़ हरे

आप से आप कट कर

आ रहे जड़ से उखड़ कर

 

और आग खुद ब खुद

पहुँच रही चूल्हों से निकल कर

 

पितर 

आते उतर 

बरसाने के लिए फूल

और आग में 

घी डालने के वास्ते

जाने कहाँ से

बन कर गायें 

चली आयें माँयें 

 

जो मर चुके 

पहले से

आश्वस्त करते

 

व्यवस्था पूरी है

चुस्त दुरुस्त 

चौकस चाक चौबंद 

मुस्तैद 

 

कतार से आयें 

रसीद कटवायें

पावती ले जायें 

अफवाह न फैलायें

 

बेटा बाप को दे रहा मुखाग्नि 

बाप बेटे को 

कोई अपने को 

काँधा लगाने की कोशिश कर रहा

 

बेटियाँ बहुयें मिल रहीं गले

लिपटी हुई एक ही कफन में 

 

आपका कोई नहीं है 

तो कोई बात नहीं है 

 

आगे आय़ें

जी न जलायें 

आपके लिए भी हैं 

पास हमारे 

कई योजनायें 

इन्हें भी आजमायें

सुविधा का लाभ उठायें 

 

इससे पहले

कि घिर उठें घटायें 

 

धुआँ जो हो रहा है

आँखों में खो रहा है

फिर भी आँसू सो रहा है

कहाँ कोई रो रहा है

 

हो सके तो 

देख कर मुसकुरायें 

इस अराजक समय में 

शास्त्रसम्मत कोई बात बतायें 

अर्थ समझायें 

धर्म निभायें

और काम पर जायें 

जो है नहीं कहीं 

दायें या बायें 

 

यहाँ से वहाँ तक

उधर से इधर तक

बताती

और मिलाती सीमायें 

जल रहीं चितायें

 

और चूँकि आदमी नहीं उतने

बचे रह गये

शोक संवेदना भी

प्रकट करने के लिए 

 

इसलिए चितायें ही

एक दूसरे की खातिर 

कर रहीं 

शोक सभायें

 

जिसमें जड़ अचेतन

समस्त मानवेतर 

खड़े होकर 

गाते मिल कर :

 

जन गण मन

जलती जाती हैं 

सबकी नित्य चितायें 

 

पंजाब बंग गुजरात 

हर तरफ 

कैसी चली हवायें 

 

विन्ध्य हिमाचल

गंगा यमुना 

आँसू आठ बहायें

 

तब भी नत कर माथा

तेरी ही जय गाथा

गायें और सुनायें 

 

लोकतंत्र अधिनायक 

किसको 

मन की व्यथा 

बतायें 

 

जय हे जय हे जय हे

भय में सब लय हे...

 

हो सके तो आयें 

शामिल हो जायें

इस राष्ट्ररुदन में 

मिल कर गायें 

 

और हाँ 

बहना गलना  

घुलना जलना 

या मिट्टी में मिलना

आप पसंद करेंगे क्या

 

कृपया बतायें 

नाम लिखायें 

 

साथ निराधार अपना

आधार दे जायें

 

गूँज रही हैं 

अनंतिम घोषणायें

महत्वपूर्ण सूचनायें 

 

शुभकामनायें

अनंतयात्रा की 

अनेकानेक शुभकामनायें ...

                                                            🔥

                                                                                       प्रेम रंजन अनिमेष

(यह कविता ख्यात अभिनेता व रंगकर्मी राजेंद्र गुप्ता जी के स्वर में नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक कर भी सुनी जा सकती है :  

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10226054970145435&id=1372173311  )