सोमवार, 28 जनवरी 2019

एक अनलिखी डायरी





नये वर्ष की अशेष  शुभकामनाओं के साथ  'अखराईमें  इस बार साझा कर  रहा  अपनी यह कविता  एक अनलिखी डायरी 

                                     प्रेम रंजन अनिमेष 
एक अनलिखी डायरी


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एक कोरी डायरी पर
लिखने में कुछ भी
हिचक होती


जो लिखें
और जैसे
सुंदर हो इस सादगी से


यह लिखाई
यह सियाही
जोड़े न कुछ तो
हर्फ भी न लगाये


इस निष्कलंक पवित्रता
इस अनछुए ऐश्वर्य में


किसी की भेंट यह
पाट दें कैसे
दिन रात के हिसाब से


सँभाल कर रखते
पन्ने भी पलटते एहतियात से
खोल कर तकते भी नहीं
एक टक देर तक
कि पड़ जायेगी पलकों की परछाईं 


फिर होता यह
कि बरस गये
रह जाती
वह ऐसे ही


एक सादी डायरी पर
कुछ भी लिखने में
सोचते हम


और जीवन के पन्ने
भर देते कैसे
बिना सोचे


काट कूट
और चिचरियों से
                                                            प्रेम रंजन अनिमेष