गुरुवार, 27 जुलाई 2017

दूसरी विदाई






दो बरस पहले माँ को विदा किया था । कल दूसरी बरसी है उसकी । एक कविता उसे नमन स्मरण करते हुए श्रद्धासुमन स्वरूप

                          ~ प्रेम रंजन अनिमेष  


दूसरी विदाई



पहली विदाई माँ की
हमने नहीं देखी
देख भी कैसे सकते
पर देखते
जब तब चमकती उसकी आँखों में


याद जब कभी वह करती
और बताती
कैसे आ गयी थी बारात उसकी
समय से पहले ही
और रही थी
ब्याह के कितने दिन बाद तक वहीं


किस तरह कहाँ कहाँ से
रोशनी के साधन जुटाये गये थे
उस जमाने में


और शास्त्रार्थहुआ था कैसे
तीन भाषाओं के
ज्ञानी उसके वकील ससुर से
मझले चाचा ने सवाल कर दिये थे
खेती से जुड़े


दूर तक पहुँची थी छनते पकवानों की खुशबू
और बनीं किसिम किसिम की जाने कितनी मिठाइयाँ    
बँटती जो रहीं गाँव में
कितने दिन बाद तक उसके जाने के


पहली वह विदाई उसकी
माता पिता पितरों ने की थी
दूसरी विदाई हमने दी दो बरस पहले
उसके अपने जायों ने 



क्या उसके बारे में भी
जहाँ कहीं वह होगी अभी
बात करती होगी ?


या बस भरी डबडब आँखों से
देखती निहारती तकती होगी शून्य की ओर


शून्य ही तो हमने उसे दिया
आग और धुएँ के सिवा
राख उसकी पानी में
प्रवाहित करने से पहले...


                      ~ प्रेम रंजन अनिमेष