सोमवार, 28 फ़रवरी 2022

आखिर किसके लिए…

 

'अखराई' के इस अक्षर मंच पर इस बार साझा कर रहा अपनी कविता 'आखिर किसके लिए… '  

एक बार फिर घमासान छिड़ गया है । जैसा हर बार  होता है, युद्ध के साथ सिर उठाने लगती है सर्वनाशी भयावह महायुद्ध की आशंकायें ! जब तक ऐसे युद्धों और ऐसी युयुत्सा का अंत नहीं होता, दुनिया के अंत का दुःस्वप्न मँडराता रहेगा । ऐसे में आम आदमी शांति की कामना ही कर सकता है । हालाँकि जैसा मैंने अपनी एक और कविता में कहा है :

 

केवल कामना करने से

तो नहीं

सच यही

कि भरसक जूझने

सामना करने से

सुनिश्चित होती  

शांति

 

मिलकर सुनिश्चित

करना होगा उसे

समय रहते

अन्यथा कहीं

ऐसा हो नहीं

कि रहे नहीं

कहने के लिए भी कोई

अंततः

शांति

शांति

शांति...  !

 

                              ~ प्रेम रंजन अनिमेष

 

आखिर किसके लिए


µ


क्या इस तरह होगी
अगली लड़ाई 
कि मरने मारने के लिए 
बचेगा ही
नहीं कोई
  

 
मुश्किल कितना 
है निर्माण 
और ध्वंस 
कितना आसान

 
गर्वित हर्षित 
मदमस्त हुक्मरान
जोड़ जुटा कर 
सर्वनाश के
अनगिन सामान

 
अब तो आदमी के
खिलाफ खड़ा आदमी
होड़ और भीड़ में 
दूसरे को धकेल गिरा कर
इस तरह आगे बढ़ा 
सिर चढ़ा आदमी
कि हर एक को लगता
वही सबसे बड़ा 

 
मानो मर्ज हो संवेदना 
हर तरफ लगाया जा रहा
उससे मुक्ति का टीका 
दुनिया भर में 
जारी जैसे
मानवता उन्मूलन 
महाअभियान

 
महासंग्राम में 
क्या सचमुच होगा
कुछ भी महान

 
महामारी भुखमरी की 
मार से जो बच जायेंगे 
अहंकारियों के
अहंकार से
मारे जायेंगे 

 
जीवन तो
फिर भी रहेगा 
लेकिन क्या होगा कोई 
जो कहानी हमारी
अपनी जुबानी कहेगा...
?

 

                                    प्रेम रंजन अनिमेष