गुरुवार, 27 सितंबर 2018

रोकना


अखराई में इस बार साझा कर रहा पिता को याद करते हुए अपनी यह कविता रोकना’  
                          ~ प्रेम रंजन अनिमेष

रोकना

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बीमारी से बेकल बेहाल पिता
कभी रात की बेचैनी में
उठकर कहते
लगता है
अब नहीं र‍हूँगा
आज चला जाऊँगा


मैं सुनता चुपचाप
कुछ नहीं कहता


बस सोने से पहले
छुपा देता
उनकी चप्पलें

जैसा बचपन में करता
जब नहीं चाहता
कोई जाये
घर से...