रविवार, 29 दिसंबर 2013

कविता ~ 'ठिठकना'



नये साल की शुभकामनाओं के साथ  इस बार 
अपनी यह कविता 'ठिठकना' प्रस्‍तुत कर रहा हूँ 
जो बहुत से लोगों को बहुत बहुत पसंद है   
                                               
                                              ~  प्रेम रंजन अनिमेष



ठिठकना


एक मिनट के लिए
किसी का हाल पूछने रुकूँगा
और बारिश में घिर जाऊँगा

एक मिनट
राह बताने लगूँगा अजनबी को
और गाड़ी छूट जायेगी

एक मिनट थमकर
एक वृद्ध को सड़क पार कराऊँगा
और काम पर मेरी हाज़िरी कट चुकी होगी

फिर भी चलते चलते 

ठिठकूँगा
एक मिनट के लिए

कि चौबीसों घंटे में अब
इसी एक मिनट में
बची है ज़िन्दगी... ! 

गुरुवार, 21 नवंबर 2013

जीवन खेल (कुछ कवितायें क्रिकेट के बहाने)

               

                                         जीवन खेल
 

खेल और खेल जीवन से जुड़ी अपनी कुछ (16) कवितायें कभी एक कविता श्रृंखला के रूप में साहित्यिक  पत्रिका  'संभवा' में आयी और चर्चित हुई थीं । इस क्रम में फिलहाल सौ से अधिक कवितायें  हैं । क्रिकेट के बहाने रची इस श्रृंखला में से 25 और कवितायें प्रस्‍तुत  कर रहा हूँ इस बार यहॉं 

                    प्रेम रंजन अनिमेष


1.
अंतिम दिन का मैदान                                                                                                       

पहले दिन तो
अछूती थी खेल पट्टी
अनाहत दूबों के अँखुओं से भरी
अंतर में कहीं दबी हुई नमी

आज अंतिम दिन
इस चुनौतीपूर्ण कसौटी का
निर्णायक मोड़

पीछे की सारी हलचलों की
खराशें हैं इस पर
और लाल मटमैले धब्बे

जगह जगह सिलवटें और टूटन

हर टप्पे के साथ
उड़ती है धूल

गेंद कभी बैठ जाती है
कभी सहसा उठ कर
मानो चूमना चाहती

अच्छे दिन तो सब देख लेते
खिलाड़ी वही
खेले बेहतर जो खराब मैदान पर
सबसे सधी कोशिश करे
सबसे खरा प्रदर्शन
हवा के रुख को मोड़े
और तब भी पाँव अडिग टिके रहें जमीन पर

यही तो निकष
यही तो परख
कौशल की संयम की
युक्ति की मनोबल की

जो इसे बरतेगा निभायेगा
वही रहेगा
इस दबाव को झेल सकेगा
थाह पायेगा
राह पायेगा
धाह में खिलेगा
अंत तक
रहेगा विजेता

अंतिम दिन की इस खेल पट्टी पर
जहाँ हर क्षण
पहले प्यार की तरह अप्रत्याशित...

2.
भीतरी किनारा

घूमती लहराती आयी गेंद
और अंदरूनी किनारा लेकर बल्ले का
यष्टि को लगभग चूमती
निकल गयी

विकेटकीपर ने बायीं ओर मारा गोता
उछलती जाती गेंद को लपकने के लिए
पर वह चली गयी पीछे
छूते उसके दस्ताने

एक पल में
दो दो जीवनदान
बच गया बल्लेबाज

सीमा पर खड़ा क्षेत्ररक्षक
दौड़ता लगाता छलाँग फिसलता
पर रोक नहीं पाता
गेंद को सीमा रेखा से पार जाने से
चोटिल फिर वह बाहर चला जाता
महत्वपूर्ण खिलाड़ी रक्षकदल का
पता नहीं ठीक होकर कब वापस पायेगा

बल्ले का नहीं
यह किस्मत का अंदरूनी किनारा जैसे

अब संयोग कि कोई पक्ष कोई विपक्ष में...

3.
जहाँ कोई नहीं


उछल गयी है गेंद आसमान में
और हलक में बल्लेबाज का कलेजा
अब तो गयी जान
अब तो बिखरी पारी

चारों ओर से
भाग कर आते क्षेत्ररक्षक
पर गेंद गिरती
उन्हें छकाती
उस जगह
जहाँ कोई नहीं

जान में आती जान
साँस में साँस

दौड़कर दौड़ भी अपनी
पूरी कर लेता बल्लेबाज

ऐसे ही
ऐसे ही
टूटता तारा कोई आकाश से
या आदमी के असलाह
गिरें कभी
तो गिरें

जहाँ कोई नहीं

वरना इतने तो आत्मघात के सामान जुटा लिये
कहीं भूल इतनी बड़ी कर जायें
कि यह अपनी पूरी पृथ्वी ही
बन जाये जगह ऐसी
जहाँ कोई नहीं
जहाँ कोई नहीं...


4.
पूर्वानुमान                                     
 
गेंद छूटेगी
गेंदबाज के हाथ से
बल्लेबाज के रूप में तब उसे
लख कर खेलना चाहोगे
तो नहीं खेल पाओगे ठीक से

गेंद छिटकेगी
लगकर बल्ले से
एक क्षेत्ररक्षक की तरह फिर उसे
पकड़ना चाहोगे
फिर शायद ही झेल पाओगे

कब कहाँ किस ओर कैसे
क्या बरताव होगा अवधान करते

अनुमान लगाना जरूरी है
पहले से
खेल हो या जिंदगी में
अच्छा करने के लिए

हाँ पूर्वानुमान ही हो वह

पहले से तय की
कोई जिद नहीं...

5.
खाली गेंद                                        

कोरी गेंद है
जिस पर हुआ नहीं कोई धावा
जो गयी खाली

अंक पृष्ठ पर
एक विंदु जिसके लिए

गेंद थी अच्छी
या क्षेत्ररक्षण अच्छा
या बल्लेबाज चूका

खाते यह नहीं बतायेंगे

बस इतना
कि गेंद वह गयी खाली

यह भी नहीं
कि लगातार इन्हीं के दवाब से
गया बल्लेबाज या बिखरी पारी

चौकों छक्कों पर होते धमाके
यह याद रहता किसकी गेंद पर लगे
या किसने कितने लगाये

पर अकसर
खेल के निर्णय में
निर्णायक होतीं
चुप चुप गुजरने वाली
ये गेंदें खाली...


6.
पहला चरण                                                            
 
हवा में गेंद लहरा रही है
गेंदबाज में जोर है
वह है अभी रौ में

गेंद नयी खेल पट्टी भी
वातावरण में भी नमी

इस खेल में सफलता का
एक सूत्र है यह भी
जहाँ जरूरी
प्रतिद्वंद्वी का सम्मान करो
परिस्थितियों का मान करो
मौसम का मौके का भी

सँभाल कर खेलो देखकर छोड़ो
जाने दो
इस पहले सत्र विजयी होने दो उन्हें इस तरह
कि तुम अविजित रह सको

प्रतिपक्षी को दे दो यह चरण पहला
आगे दिन होगा तुम्हारा...


7.
मील का पत्थर                           
 
जीवन के सफर में
पत्थर मिलते हैं कई जगह
यह तुम पर है
कि किस तरह उन्हें
बदल सको मील के पत्थरों में

ऐसा कई बार करने वाला वह अपराजित नायक
बढ़ रहा था एक और संगे मील की ओर
दबाव हरदम होता उस महत्वपूर्ण पल
होगा और ज्यादा
देखने चाहने वालों के हुजूम
और अपनी उम्मीदों का

दुर्धर्ष प्रतिद्वंद्वियों ने ताड़ा मौका
चीते की फुर्ती से कसते घेरा
उसके एक एक कदम को
कर दिया मुश्किल

पर इन सबके बावजूद आखिर
पहुँचा वह लकीर के उस पार

फिर सबसे आगे वही थे
उसके अपने दल के साथियों से
पहले और आगे
बधाई उसे देने के लिए...


8.
शतक                                                      

बड़े जतन
बड़े सुयोग से
मिला यह मौका

जीवन के
सौ बसंत हैं
और सबको उन्हें
जीने का हक है

बढ़कर छू लो
पा लो
अंजाम तक पहुँचो
हासिल करो
तुम्हारी प्रतीक्षा में
यह शतक है

सरा जोर लगाओ
पूरी कोशिश अपनी ओर से

सब एहतियात रखो
हर क्षण को देखते करीब से

जोखिम तो है
कुछ भी करने में
कुछ करने में भी
यूँ ही चुपचाप खड़े रहने
यहाँ तक कि
आँखें मूँद लेने में भी

सौ से पहले
आयेंगे हजार खतरे
देनी होंगी अनगिन परीक्षायें

सब तुम पर निर्भर
जो कर सकते हो
भली तरह करो

बाकी जाऩे दो
उसको सोचो

यों होने को तो
कुछ भी हो सकता है
           
मैदान छल सकता
अचूक हो सकता कोई हमला
निर्णय गलत जा सकता
हो सकता कोई हादसा

पर धैर्य रखो
और हौसला

अनिश्चय का यह खेल
पर इतना तय
इस जीवन में
सौ बसंत हैं
सौ से भी अधिक

इसे इसकी पूर्णता में
तुम पा सकते हो
अनंत तक जा सकते हो
इसी दुर्लभ नश्‍वर क्षणभंगुर जीवन में
अमरता पा सकते हो...!


9.
यादगार 
                                                 
विजय मिली
साहसिक
ऐतिहासिक
चुनौतियों से जूझ कर
कीर्तिमानों को ध्वस्त करती

और वह क्षण आते
मैदान पर भागे
विजयी दल के सदस्य सारे

डंडा लिया किसी ने
किसी ने गिल्ली
किसी ने रख ली गेंद
इस जीत की निशानी
इस खुशी की याददहानी के बतौर

सबसे अच्छा किया जिसने चुपचाप मन ही मन
समेट कर रख लिया
वह मैदान ही अपने साथ
हमेशा के लिए...


10.
तब भी


सिर पर शिरत्राण
पैरों को ढँके पैड
हाथ में दस्ताने
कोहनी पर गद्दी
घुटनों पर पट्टी

सबसे बड़ा
सबसे कड़ा
कवच कलेजे का
और कितने
ढाल यहाँ वहाँ
पोशाक के भीतर छुपे

फिर भी चोट
रास्ता ढूँढ़ लेती
कोई जगह लगने की

हमें चोट से
सीखना चाहिए...

11.
सिक्का 
 
उस सिक्के की बात नहीं कर रहा
जो मुकाबले से पहले उछाला जाता
यह तय करने के लिए
कि पहल कौन करेगा
पारी किसकी पहली होगी
दाँव किसका पड़ेगा पहला

एक सिक्का रख देता प्रशिक्षक
पिच के बीच कहीं
और कहता गोलंदाज से
गेद यहाँ पड़े और ठीक यहीं
जो ऐसा हुआ सिक्का तुम्हारा

उधर बल्लेबाज के गुरू ने रखा
सिक्का विकेट के ऊपर
अगर इसे शाम तक कोई गिरा सका
आँधी तूफान के सिवा
फिर यह तुम्हारा

जो कर सके ऐसा
इस मैदान में
हर मैदान में
इस खेल पर
इस जीवन में
उनका ही सिक्का
उन्हीं का

मैं उस सिक्के की बात कर रहा...


12.
पारी समाप्ति की घोषणा                                                                                               
बहुत हुआ

बहुत जमा किया
बहुत जुटा लिया

अब मैं इस दल का अगुआ
पारी समाप्ति की घोषणा
करना चाहता

चाहता तो अपनी पारी
अभी रख सकता था जारी
हक था
कोई रोक नहीं सकता

मगर सिर्फ खेलना नहीं
परिणाम हासिल करना चाहता

आगे चुनौती देना
सामने वाले को आजमाना

जबकि मैदान पर भागते भागते
प्रतिद्वंद्वी थक चुके
नहीं अभी जवाब देने
की सही मनोदशा में

यही
सही
अवसर है

शिविर से हाथ उठा
करता इशारा
अब दाँव रखने का

पर यह क्या

बीच मैदान में डटे
जो अपने
वे तो इधर
देख ही नहीं रहे...



13.
शिद्दत                              
 
जैसे जैसे चाहत बढ़ती गयी उसके लिए
और दूभर हो गया उसे देखना

जब मिलता अवसर
थोड़ी देर तक तक कर
हटा लेता आँखें
चेहरा फिरा लेता
बदल देता दृश्य
कहीं चला जाता

फिर आकर देखता

चाहत की यह कैसी शिद्दत
कि जो अपने से सबसे प्रियतर
कठिन उसे नजरों में भरना
और नजर से दूर भी करना...


14.
निराभार                   
 
गेंद आती
बल्लेबाज को छकाती पीछे जाती
या वह जाने देता ऐसे ही
कभी चली जाती हल्के से बल्ले के कोर किनारे चूमती

पीछे मुस्तैद विकेटकीपर अपने दस्तानों में समेटता
वापस खेल में उछाल देता
यह काम उसका
जब तक सब सही सही
किसी का ध्यान नहीं
यह तो काम ही उसका

जैसे सामने खड़े निर्णायक का
हर आने वाले पल हर गेंद पर नजर
रेखाओं सीमाओं और नियमों पर
किसी का उल्लंघन तो नहीं हुआ
और बराबर करना करते रहना
सधा फैसला

सब रहा सही
तो कोई बात नहीं
अपेक्षा यही

लेकिन जहाँ हुई कोई चूक
निंदा वहीं आलोचना हर कहीं
एक किनारे सारा किया धरा
वह त्रुटि ही गुणित होती रहती
गुणा कई

जीवन में हैं ऐसे कई भार
निभाते जिन्हें नहीं कोई आभार
लेकिन तनिक विचलन विपथन पर
हाहाकार अनिवार अपार...


15.                                                  
प्रशंसक
 
खेल के रंग में रँगा आता वह
देश के रंग में
मैदान में

शंख फूँकता
ध्वजा लहराता

खेलने वालों के लिए
देखने वालों के लिए
देश और दुनिया के लिए

खुद खिलाड़ी
दर्शक
खेल

वे देखते
खेल के बीच
जब तब उसे
अगर देख सकें

कुछ देखता कहाँ वह और कब
होकर भी मैदान में
बस वहाँ उठती  
हर लहर उसे छूती
उसी के भीतर जागती

और वह फूँकता शंख
लहराता ध्वजा...


16.                                                   
जीवन खेल                        
 
जीवन खेल है
खेल में भी जीवन
खेल का भी जीवन

जीवन तो दे सकता
जीवन देने वाला ही

पर जुगाना भी उस जीवन को
दान जीवन का

बचा सकते इस तरह जीवन को
जाने अजाने
प्रतिद्वंद्वी भी निर्णायक भी

ले भी सकते

जैसा मेरे एक फैसले ने
किया

उस शाम लौटकर
महसूस हुआ
निर्णय मेरा गलत था
और यह भी
कि एक और असफलता
उस बल्लेबाज का
खेल जीवन खत्म कर सकती

पता भली तरह
दो गलतियाँ मिलकर नहीं बनातीं
कोई सही

फिर भी
अगला अवसर जब आता
अगली पारी के आरंभ में ही
संदेह का लाभ उसे दे देता
और वह भी जाने नही देता अवसर हाथ से
मिले हुए उस जीवनदान का
पूरा लाभ उठाता
लंबी परी खेल
अपनी जगह अपना मुकाम बनाता

कहीं एक सुकून अपने दिल को भी मिलता
कि खेल जीवन उसका
बचा सका

थोड़ा अफसोस लरूर होता यह जानकर
कि उस प्रतिद्वंद्वी गेंदबाज को आगे चलकर
फिर अवसर
नहीं मिला...


17.                                                     
दुर्जेय                                                       
दस साथी हैं
पहरे के लिए
फिर भी लगता जैसे
मैदान में हर ओर
अंतराल ही अंतराल
समझ में नहीं आता कैसे
गेंद को रोकें
सीमा पार जाने से

इतना सा बल्लेबाज का बल्ला
पर लगता तीनों छड़ियों से बड़ा
कुछ सूझता नहीं
किस तरह उसे भेदें
किस तरीके से परास्त करें

रोका भी कैसे जा सकता
बस सबसे करीब के देखने वाले की तरह
लुत्फ जरूर लिया जा सकता
जब कोई अपने जीवन का
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहा...


18.
लय     
 
अपनी लय में था बल्लेबाज
पूरी रौ में

इसलिए इस मुश्किल मैदान पर
जहाँ दूसरे बल्लेबाजों के लिए
कठिन था गेंद को बल्ले पर थाहना

एक तेजी से लहराती बाहर जाती
गेंद का करते पीछा
उस तक पहुँच ही गया
और भरसक उसे काबू में भी कर लिया

बस आखिरी समय
थोड़ा और लहराती
बल्ले को चूमती
चपला सी इतराती इठलाती निकल गयी वह
क्षेत्ररक्षक ने झेल लिया
गिरते पड़ते किसी तरह

और कुछ इस तरह शामियाने लौट गया योद्धा
जो अपनी रौ में था
पूरी लय में

अन्यथा औरों जैसा वह भी
पराजित होता रहता बार बार
पर बची रहती पारी...


19.
बदल                                                         
शामियाने लौटा
तो सबने कहा
उस बाहर जाती गेंद को
नहीं चाहिए था छेड़ना
जिसके चलते बाहर का
रास्ता पड़ा देखना
        
रोकना था अपने को
और बल्ले को
वह प्रहार था करना नहीं

लेकिन कैसे
कब और कहाँ
मैं नहीं जानता
समझ सकता

ठीक इसी गेंद पर
किस तरह आता ध्यान
कैसे जागता यह ज्ञान ?

अगर रोकने ही चलता
फिर वहाँ भी सहमता ठिठकता रुकता
बेझिझक जिन गेंदों को पहुँचाया
सीमा के पार
वाहवाही मिली जिन पर इतनी सराहना

सब बस
मामला एक सूत का
बल्ले या गेंद की भटकने का
यह गेंद अनंत में होती वरना
क्षेत्ररक्षक के हाथों के बदले

मुझे क्या पता था
यह विवेक तो मिलता
गलती हो चुकने के बाद ही

कि ठीक इस पल अपने को
था बदलना...


20.
एक लंबी पारी                                              
 
लंबी पारी खेली

खूब मिली
सराहना
दर्शकों और आलोचकों की

लेकिन कहना चाहता
उस लंबी पारी में भी
कई पारियाँ थीं

देखने वालों को उतनी दूर से
शायद नहीं दिखा
प्रतिस्पर्धियों ने भी
गौर नहीं किया

अपने लेखे तो
परस्त हो गया था
कई मर्तवा
उस दौरान

किस्मत से
साँस तब भी बची रही
दाँव फिर भी गया नहीं

फिर से सँजो कर अपने को
नये सिरे से की शुरुआत
मानो जीवन नया शुरू किया

एक लंबी पारी खेली
खूब सराहना मिली

मगर मुझे पता
उस एक पारी में
पारियाँ थीं कई...


21.
होंठों पर मिट्टी                                                
अंतिम समय
आखिरी बार
मैदान की मिट्टी
और घास को
हाथों से छुआ
झुक कर किया नमन
मन ही मन
की क्षमायाचना

बरसों पहले
पैर जिस पर अपने रखे
और इतने सालों चला

एक आदमी
एक हस्ती
अपने आप में जो
एक अकेला काफिला...   

                                                   
22.
विदाई समारोह       

एक खिलाड़ी का
खेल जीवन कितना

फिर भी इतना चला
इतने लोगों का प्यार मिला
उस सबके लिए
आभार किन शब्दों में और कैसे
व्यक्त करे

अब समाप्त अंतिम पारी भी
अवसर विदा का
हृदय कोर तक भरा
दर्शक दीर्घा की तरह

मैदान के बीच
सम्मान समारोह

भले खेल को खेलने वाला
वह एक सीधा सादा भला
कुदरत की दी कला
निभाया भर जिसे उसने
कीर्तिमान सब आप से आप बने

करोड़ों की चाहत और दुआ
इससे बड़ा सम्मान क्या
खूब खेला जीवन
खेल को जिया
नहीं कुछ गिला

सब तो भला

बस यह एक खलिश जरा
मौके पर पहुँचे
इस खेल इस कला को नवाजने
मैदान को मंच कर खड़े
लोग रसूख वाले

सुना उनके बारे में
एक से एक करनी करने वाले
मिल रहा सम्मान उन हाथों से
लाखों करोड़ों देशवासियों की ओर से

ठुकरा भी नहीं सकता इसलिए...


23.                                               
धरोहर                                                      
 
वह दृश्य नहीं भूलता

घर के छोटे परदे पर वह दृश्य
उस बड़े खिलाड़ी के
मैदान के अंतिम फेरे का

साथी खिलाड़ियों के कंधों पर चढ़ा
खेल का वह कलाकार

हाथ में लहराता तिरंगा
तिरंगे में उसका चेहरा

वह अंतिम शॉट
वह अंतिम दृश्य थमा हुआ
चाहने वालों की साँसों की तरह

आखिर में जिसके चला आता
'सर्वाधिकार सुरक्षित'
दावा किसी कंपनी का...


24.                                                       
संन्यास                                                     
जैसे बड़े भोर कोई निकल जाये
नीले नभ में लाल बाल रवि के उगते
दूबों पर ठिठकी ओस से सजे पथ पर

दुधमुँहे बचपन से ही लग गयी थी लगन
और फिर उसी धुन में रहा रमा
बाकी सबसे समेट कर अपने को
लकड़ी और चमड़े की गंध से घिरा
सकत देती रही किलक घास की मिट्टी और हवा

खाता पीता
सोता जागता
जीता रहा बस खेल को
उसी में हारता जीतता

नींद में चलते हुए भी
सोचता उसी के बारे में
जागने से पहले भागता सपनों के पीछे

गिरा कितनी बार कितनी लगी चोटें
कहाँ कहाँ टूटा
पर झाड़कर धूल जोड़कर अपने को
उठा फिर से
खून पसीना करता एक

दस का बच्चा हो चला चालीस का
दस के बाद जैसे सीधा चालीस का
कीर्तिमानों के पहाड़ पर खड़ा
ज्ञानी जनों को शायद तब आयी ममता
आवाज देने लगे उसे संन्यास लेने के लिए

आखिर उसने सुना
उन्हें नहीं अपनी दुखती रगों को
वह ठिठका रुका
अपने इस जुनून को
करने अलविदा

और कुछ तो जाना नहीं कभी
इतने सालों में
कुछ और किया कब
जाने क्या होगा आगे जीवन में
लोग रो हँस रहे

नहीं संन्यास उसने नहीं लिया
संन्यास में तो वह अब तक था
एक पाँव पर खड़ा एकनिष्ठ
अडिग तपस्वी बालयती सा

अब जानेगा विषयों को
अब देखेगा जीवन सतरंग
देखेगा दुनिया होगा दुनियादार
सँभालेगा घर संसार
अब खुल रहा नया अध्याय
हँI अब सही मायनों में शुरू होगा गृहस्थ आश्रम...


25.                                                
परछाइयाँ
                                                                             
शाम हो रही
और बढ़ रही मैदान में
परछाईयाँ

खेल पट्टी पर
करीबी क्षेत्ररक्षक की परछाईं
छू रही प्रतिद्वंद्वी बल्लेबाज की परछाईं को

गेंद की परछाईं
टकराती बल्ले की परछाईं से

खिलाड़ी खेल में शामिल
देखने चाहने वालों में भी
देखते परछाईयों का यह खेल

सूरज डूब गया पहले
अब डूब रही
उसकी परछाईं भी

रोशनी नहीं
रोशनी की परछाईं में
चल रहा था खेल इतनी देर से

हिल कर खेल प्रहरी के दोनों हाथ की परछाईं
संकेत दे रही
आज के खेल की समाप्ति का...





                          - प्रेम रंजन अनिमेष     
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