वर्तमान परिस्थितियों के
परिप्रेक्ष्य में अपनी एक और कविता
'पृथ्वी 2020' साझा कर रहा आप के साथ 'अखराई' के इस सृजन मंच पर ।
आप सबके लिए मंगलकामनाओं शुभकामनाओं
और सम्पूर्ण सृष्टि के लिए शुभेक्षा सहित | |||
~ प्रेम रंजन अनिमेष
|
पृथ्वी 2020
µ |
मंदिर
बंद
बंद
मस्जिद गिरिजाघर और गुरुद्वार बंद
धर्म
बंद
सब
काम बंद है अर्थजगत व्यापार बंद
मॉल
सिनेमा
हॉल बंद हर हाट बंद बाजार बंद
मेले
ठेले
खेल
तमाशे जश्न तीज त्योहार बंद
जलसे
जुलूस
धरने
मजलिस सभागार दरबार बंद
बाग
बगीचे
सैर
सपाटे मेल मिताई प्यार बंद
ब्याह
सगाई
छठी
बधाई उत्सव लोकाचार बंद
जंग
सियासत
दहशत
नफरत सारे कारोबार बंद
राह
नहीं है रुकी
सड़क
भी खुली मगर पहियों की है रफ्तार बंद
चलने वाले बेजार बंद
इस
पार बंद
उस
पार बंद ज्यों हर इक खुला किवाड़ बंद
ज्यों हर घर हर परिवार बंद
जैसे हो पारावार बंद
दलों
मोर्चों मंचों को यूँ दिखा अँगूठा
हँसता
ढीठ अदीठ जीव नन्हा अदना सा बिना किसी आह्वान घोषणा
कर सारा संसार बंद
सब
के लिए नहीं
मनुष्य
की खातिर केवल क्योंकि वही
सब नहीं
न कुछ भी
इस अनंत ब्रह्मांड में कहीं
अपने
ही घेरे में कैसे
बस
बेबस लाचार बंद
क्षमा
करें
जीवन
का नवविन्यास हो रहा विस्थापित निर्वासित प्रकृति का
पुनर्वास हो रहा
अगर
असुविधा हो तो इसके लिए
खेद
है सृष्टि संतुलन पथ निर्धारण
कार्य
प्रगति पर है...
प्रेम रंजन
अनिमेष