सोमवार, 30 सितंबर 2024

कविता शृंखला ' बचपन के कुछ खेल '

 

आशा है आप सब सकुशल सानंद होंगे !

काम काज की अत्यधिक व्यस्तता ने वर्षों से इस पटल पर प्रतिमाह कम से कम एक पोस्ट ज़रूर करने की निरंतरता पर प्रभाव डालते हुए अब इसे तक़रीबन त्रैमासिक सा कर डाला है । परंतु पूरा प्रयास रहेगा यथाशीघ्र इसकी आवधिकता और बारंबारता पूर्वत करने की । 

कविता शृंखलायें आरंभ से मेरे दिल के बहुत निकट रही हैं और यह प्रविधि वह व्यापकता और विस्तृत वितान प्रदान करती है जो समान्यतः आज के परिवेश में अन्यथा कम मिलता है । इस बारे में पहले अपने आलेखों और टिप्पणियों में लिखा है ।  

इस बार 'अखराई' के इस मंच पर अपनी बड़ी ही अनूठी कविता शृंखला ' बचपन के कुछ खेल ' साझा करना चाहता हूँ, जिसे  'बिजूका' साहित्यिक ब्लॉग पर कुछ दिनों पूर्व देखा और सराहा गया है । लिंक कुछ इस तरह है :

https://bizooka2009.blogspot.com/2024/09/blog-post_23.html


आप इस लिंक पर जाकर अवश्य पढ़ें और अपना अमूल्य प्रतिसाद दें । 

शुभकामनाओं सहित 

प्रेम रंजन अनिमेष 



शनिवार, 29 जून 2024

'संक्रमण काल' पर चर्चा

 

कविता-संग्रह 'संक्रमण काल' पर चर्चा
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31 मई .2024 को सुधी साहित्यकारों साहित्यानुरागियों के समागम में अपने कविता संग्रह 'संक्रमण काल' का लोकार्पण एवं उस पर परिचर्चा का आयोजन एक अविस्मरणीय अनुभव रहा । प्रेस क्लब, राँची के सभागार में इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात आलोचक प्रो॰ रवि भूषण जी ने की और अत्यंत आत्मीय व आदरणीय वरिष्ठ कवि मदन कश्यप जी, कवि संपादक व सुहृद प्रकाश देवकुलिश जी, आसनसोल से आये प्रिय निशांत एवं राँची  विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग की सहायक प्रोफेसर नियति कल्प ने भी पुस्तक पर अपने अमूल्य विचार रखे। 'शब्दकार' की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम का संचालन व संयोजन प्रसिद्ध कथाकार रश्मि शर्मा ने किया। 

वर्ष 2020 से अब तक की लिखी ये कवितायें समकाल से उत्स्रुत होकर सर्वकाल को संबोधित करती हैं। ये कवितायें सदी की सबसे बड़ी आपदा या त्रासदी कही जाने वाली महामारी का मानवीय और सृजनात्मक अभिलेख तो हैं ही, उससे जूझ कर उबरने के संघर्ष और अनाहत जिजीविषा की महागाथा भी । अच्छा लगा कि साहित्य मर्मज्ञों मनीषियों ने इस अभिनव कविता संग्रह को हिन्दी ही नहीं, भारतीय भाषा वांग्मय तथा संभवतः विश्व साहित्य मे भी अपनी तरह का अनूठा काव्य संग्रह बताया और यह रेखांकित किया कि वैश्विक महामारी की पृष्ठभूमि में देश और दुनिया के स्तर पर अभूतपूर्व उथल पुथल की शिनाख्त करती ये कवितायें अपनी तरह के अनूठे इस संग्रह को चिरकालिक और वैश्विक महत्त्व का बनाती हैं ।  

कवि-आलोचक निशांत ने अनिमेष के इस कविता संग्रह को सचमुच एक बहुत ही बड़े कवि का महान संग्रह बताते हुए जोर दिया कि इतनी महत्वपूर्ण कविताओं का अनुवाद अन्य भारतीय भाषाओं के साथ साथ, पूरे विश्व में होना चाहिए ।  डॉ नियति कल्प ने कहा कि संग्रह की कवितायें निर्जीवता से जीवंतता तथा खालीपन से खुलेपन की कवितायें हैं, और 'स्व' और 'सह' को एक साथ समाहित किये हुए समानुभूति की भी, जिससे पाठकों को ये अपनी लगती हैं । कवि प्रकाश देवकुलिश जी ने कहा कि कथ्य और शिल्प दोनों का सुंदर समन्वय इन कविताओं में है, और हमारे समय समाज के लिए जरूरी सवाल भी । उन्होंने संग्रह की कुछ कविताओं का बहुत प्रभावपूर्ण पाठ भी किया। 

वरिष्ठ कवि मदन कश्यप ने इन कविताओं की अनेक विशेषताओं को रेखांकित किया और इनमें विद्यमान सूक्ष्म व पैनी दृष्टि, व्यापकता, वैविध्य और विराटता को चिह्नित किया । उन्होने कहा कि यहाँ विचारधारा सतही नहीं बल्कि गहरे पैठी हुई है, प्रकृति निर्ब्याज है तथा भाषा सहज और पारदर्शी ।  साथ ही, जटिल स्थितियों को भी अत्यंत सरलता से सामने रखने की कला भी  जो किसी भी कवि के लिए आदर्श है । उन्होने इस बात पर जोर दिया कि ये कवितायें सत्ता और शक्ति के बरअक्स सहअस्तित्व को सामने रखती हैं।

अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रख्यात आलोचक रवि भूषण ने कविताओं के विस्तृत संदर्भों  पर बात की। 'संक्रमण काल' शीर्षक को सटीक एवं विशिष्ट बताते हुए उन्होंने कहा कि यह शीर्षक एक युग व्याख्यायित करता है और यह अद्भुत संग्रह न केवल हमारे समय के सारे परिवर्तनो को दर्ज करता है, बल्कि इसके जरिये हमारे पहले के समय और आने वाले समय को भी समझा जा सकता है ।  'अँधेरे में उम्मीद' के कवि की काव्य बताते हुए उन्होंने कहा कि इस किताब में जीवन अपने विविध रूपों में बार बार आता है जो यह सिद्ध करता है कि कवि जीवन के पक्ष में खड़ा है ।

सभी वक्ताओं ने यह कहा कि महामारी के दौरान और उसके बाद पूरी दुनिया में आये व्यापक बदलावों और सार्वकालिक प्रभावों को महत्तर सभ्यता विमर्श की तरह दर्ज करने वाला किसी एक कवि का यह अनूठा और अद्वितीय 
कविता संग्रह है और पुस्तक से अपनी पसंदीदा कई कविताओं को उद्धृत किया और उनका पाठ किया । यह कविता संग्रह रश्मि प्रकाशन, लखनऊ (मोबाइल न। 8009824098, 8756219902 ) से प्रकाशित है और वहाँ से संपर्क कर प्राप्त  किया जा सकता है । इसे आमेजन से भी इस लिंक पर ऑनलाइन ऑर्डर कर प्राप्त कर सकते हैं :  

https://www.amazon.in/gp/product/8196194552/ref=cx_skuctr_share?smid=AF6SQZMKD3JHD


आग्रह है कि पढ़कर अपना प्रतिसाद अवश्य देंगे । प्रतीक्षा रहेगी । 

प्रेम रंजन अनिमेष


कार्यक्रम पर पत्र पत्रिकाओं एवं ऑनलाइन पटलों पर आये कुछ संक्षिप्त रिपोर्ट प्रस्तुत हैं । 



 









शनिवार, 30 मार्च 2024

जीवन रंग

 

रंगोत्सव, फागुन और नवसंवत्सर की शुभेच्छा के साथ ' अखराई ' के पटल पर इस बार साझा कर रहा अपनी कविता ' जीवन रंग ' । आशा है पसंद आयेगी ।

✍️ *प्रेम रंजन अनिमेष*


जीवन रंग
( इतने रंग कितने रंग )
                            ~ प्रेम रंजन अनिमेष
                            ❤‍🔥 
रानी धानी धूसर गंदुमी 
चंपई गुलाबी टेसू केसर कचनार
जामुनी जाफरानी कत्थई
प्याजी फिरोजी... 

कुछ देर सुनो 
बातें औरतों की
और रंग जाने कितने 
गूँजने लगते 

प्रतिबिंबित परिलक्षित होते
संग अपने जीवन के
रस गंध आस्वाद लिये  
खिलते खुलते 

जबकि और सब लोग  
स्याह सफेद में उलझे
भूल चुके बिसरा बैठे 
नाम भी रंगों के  

बस याद उन्हें 
बेरंग बदरंग सी नफरत
जुल्म जंग और सियासत 
इश्तेहार सौदेबाजी तिजारत

होड़ आपाधापी अफरा फरी मारामारी हर ओर
क्या केवल देखना 
लहू जो बहा 
किसका कितना ? 

जो रंग खो गये 
वे किन तितलियों के
सच के सपनों में
क्या उनके पर जिनके
दबे किताबों के पन्नों में 

लौटायेगा कौन उन्हें 
रखेगा किस तरह
आगत के लिए ? 

स्त्रियाँ ही जानतीं 
रंग जीवन के इतने
रंग जगत के
न जाने कितने 

और जो दुनियादार 
भ्रम जिन्हें कि वे ही
होशियार जानकार 

रंगों से
जीवन से
अपने अपनों से
सच सपनों से

सच में 
कितनी दूर... !
                          💔         
( आने वाले कविता संग्रह *' स्त्री पुराण स्त्री नवीन '* और *' अवगुण सूत्र '* से )

इसी कविता की विशेष दृश्य श्रव्य प्रस्तुति नीचे दिये गये लिंक पर देख सुन सराह सकते हैं :


                        ✍️ *प्रेम रंजन अनिमेष*