आशा है आप सब सकुशल सानंद होंगे !
काम काज की अत्यधिक व्यस्तता ने वर्षों से इस पटल पर प्रतिमाह कम से कम एक पोस्ट ज़रूर करने की निरंतरता पर प्रभाव डालते हुए अब इसे तक़रीबन त्रैमासिक सा कर डाला है । परंतु पूरा प्रयास रहेगा यथाशीघ्र इसकी आवधिकता और बारंबारता पूर्वत करने की ।
कविता शृंखलायें आरंभ से मेरे दिल के बहुत निकट रही हैं और यह प्रविधि वह व्यापकता और विस्तृत वितान प्रदान करती है जो समान्यतः आज के परिवेश में अन्यथा कम मिलता है । इस बारे में पहले अपने आलेखों और टिप्पणियों में लिखा है ।
इस बार 'अखराई' के इस मंच पर अपनी बड़ी ही अनूठी कविता शृंखला ' बचपन के कुछ खेल ' साझा करना चाहता हूँ, जिसे 'बिजूका' साहित्यिक ब्लॉग पर कुछ दिनों पूर्व देखा और सराहा गया है । लिंक कुछ इस तरह है :
https://bizooka2009.blogspot.
आप इस लिंक पर जाकर अवश्य पढ़ें और अपना अमूल्य प्रतिसाद दें ।
शुभकामनाओं सहित
प्रेम रंजन अनिमेष