शनिवार, 28 जून 2025

दो ग़ज़लें आम के नाम...

 

आम से ख़ास लगाव रहा है शुरू से ! इसका प्रमाण या परिणाम है मेरा कविता संग्रह अमराई, जिसमें आमों और अमराई के उस रस आस्वाद सुवास भरे परिवेश के माध्यम से जीवन, जगतप्रकृति, प्रेम, आत्मीयता, आपसदारी और स्नेह-सम्बन्धों की अनन्य कविताई है । यह बहुचर्चित और बहुप्रशंसित कविता पुस्तक ईबुक की तरह हिन्दवी की वेबसाइट पर निःशुल्क उपलब्ध है, जिसे इस लिंक पर पढ़ा जा सकता है :

 

https://www.hindwi.org/kavita/amrai-prem-ranjan-animesh-kavita

 

अखराई के इस पटल पर भी अपनी इस कविता पुस्तक अमराई की कवितायें एकाधिक बार साझा की हैं । रस परिवर्तन करते हुए इस बार प्रस्तुत कर रहा हूँ अपनी दो ग़ज़लें आम के नाम...’, जिन्हें आमों के इस मौसम में अमृत आस्वादमय आमों की तरह ही ख़ूब सराहा जा रहा है !

 

                                                            प्रेम रंजन अनिमेष

 

 

 

दो ग़ज़लें आम के नाम ...

                        ~ प्रेम रंजन अनिमेष

     

*1*

 

यही राजा ...

                           प्रेम रंजन अनिमेष

                           

यही   राजा  है   जो  घर घर  पहुँचता  है

  कोई   पहुँचे   ये अकसर  पहुँचता  है

 

बसे   परदेस   में   मज़दूर   जो   मजबूर

ज़रूर   उन   बेघरों  के  घर  पहुँचता है

 

चली आती   महक  अमराई से  उठकर 

तो  रस  फिर  रूह के अंदर  पहुँचता है

 

ख़ुदा   का   ज़ायक़ा  है  तो   यही  होगा

उसी का   ओढ़ कर   पैकर   पहुँचता है

 

जो बिछड़े यार रुत आते ही उनको ढूँढ़  

लगा कर   पंछियों  के   पर   पहुँचता है

 

पिया से दूर  गर दुलहन  तो उसके पास

ठिठोली   करता   बन देवर   पहुँचता है

 

कोई  दिल से   बुलाये  तो   जहाँ भी  हो

हुलसता  खोल  दिल के दर   पहुँचता है

 

जिन्होंने छोड़ा  उनके पास भी जब तब

लिये   ख़्वाबों में  आँखें  तर   पहुँचता है

 

बसेरे  से   हुए   'अनिमेष  कितनी  दूर

मगर फिर भी   पता लेकर   पहुँचता है

                         

                           प्रेम रंजन अनिमेष

 


*2*

 

सबसे ख़ास ...

                                  ~ प्रेम रंजन अनिमेष

                             

वो सबसे ख़ास है पर नाम उसका आम है 'अनिमेष'

सभी के वास्ते  क़ुदरत का  इक पैग़ाम है  'अनिमेष'

 

दशहरी   मालदह  जर्दालु   चौसा  सीपिया  मिठुआ 

ख़ुदा हैरान उससे ज़्यादा  उसका नाम है  'अनिमेष'

 

फ़रिश्ते   इसलिए  तो  आदमी   बन   चाहते  आना

ज़मीं  पर  जन्नतों  से  भी  हसीं  ईनाम  है  'अनिमेष'

 

है उसका  मौसम ऐसा  जा के भी  जाता नहीं  है जो

उसी के नाम अपनी सुबह अपनी शाम है  'अनिमेष'

 

वही  जलपान  जेवन  और  वही है  रात का  भोजन

अगर हो  आम घर में  तो बड़ा  आराम है  'अनिमेष'

 

महक  मदमाने वाली है  तो  रस है  रास सा  मोहक

जो ऐसा  ज़ायक़ा तो  क्या ज़रूरी जाम है  'अनिमेष'

 

कोई  लँगड़ा  कहाता   सारे  जग में   जाना जाता यूँ

है मतलब नाम से क्या देखा जाता काम है 'अनिमेष'

 

जो  अपने  हौसलों  से  मुश्किलें  आसान  कर  लेते

ज़रूरत  ज़िंदगी में  ऐसों की  हर गाम है  'अनिमेष'

 

बनेगी  और बसेगी  फिर   इसी से  दुनिया आगे की

किसी की नज़रों में  गुठली भले बेदाम है  'अनिमेष'

 

यही  है  चाह  सब  मंज़िल  तलक  कहते हुए  जायें 

है जितना राम का सत आम का भी नाम है 'अनिमेष'

                                      

                                       प्रेम रंजन अनिमेष