नववर्ष
की शुभकामनाओं के साथ अपनी यह कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ
प्रेम रंजन अनिमेष
संकल्प
तुम जिंदगी हो मेरी
तुम्हारे साथ अभी
बहुत कुछ करना है
जोड़ने हैं सेतु नये
गाँठनी है नाव
पथ्य पंथ का पकाना
फेंट धूप छाँव
हाथों में हाथ होंठ होंठों पे धरना है
चालतीं नदियाँ कहीं
पुकारते पहाड़ ये
हाँकता भीतर भरा
गुबार ये उजाड़ ये
भूलना किसी को क्यों सभी में बिसरना है
कितना कुछ बाकी है
कितना कुछ छूटा है
बूँद बूँद रीत रहा
तन का घट फूटा है
जितनी हैं बवाइयाँ नेह वहाँ
भरना है
पोंछनी है आँख हर इक
और सहेजनी हँसी
सत्तू में सान नमक
जैसी यह तनिक खुशी
काँटों से चोटों से और भी निखरना है
अपनों से मिलना है
सपनों को लिखना है
दुनिया को लखना है
दुनिया को दिखना है
रात के समंदर में डूब कर उभरना है
कहा नहीं किया नहीं
जो मन में गुन आया
साज छूट टूट गये
साथ था जिन्हें लाया
एक इसी जीवन में जीकर सब मरना है...
adbhut...
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