बुधवार, 17 अगस्त 2016

अबके सावन...





बड़ी दीदी के जाने के बाद यह दूसरा रक्षाबंधन है । उसे याद करते हुए यह छोटी सी कविता...

                       ~ प्रेम रंजन अनिमेष



अबके सावन...

 



क्या कहीं 
कोई आँख नम है ?


अबकी राखी में
मेरी कलाई पर 


एक धागा कम है...



1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर ...

    सादगी से लेकिन अत्यंत प्रभावशाली ढंग से अपनी बात कहती क्षणिका ! रक्षा बंधन की ढेरों शुभकामनायें। आपकी ये कविता पढ़ कर बहुत से स्नेह के धागे आपकी कलाई पर बढ़ जायेंगे। यूँ भी हमारे अपने दूर जाकर भी हमसे दूर कहाँ जाते हैं ....

    कभी मैंने भी ऐसी ही मनस्थिति में ये पंक्तियाँ कही थीं, जो सार्वभौमिक सत्य है ....

    हों कहीं भी आज उनको याद के हैं फूल अर्पित
    ना सही सशरीर पर होंगे सदा यादों में जीवित

    सादर
    मंजु मिश्रा

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