‘अखराई’ में इस बार साझा कर रहा पिता को याद करते हुए अपनी यह कविता ‘रोकना’
~ प्रेम रंजन अनिमेष
रोकना
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बीमारी से बेकल बेहाल पिता
कभी रात की बेचैनी
में
उठकर कहते
लगता है
अब नहीं रहूँगा
आज चला जाऊँगा
मैं सुनता चुपचाप
कुछ नहीं कहता
बस सोने से पहले
छुपा देता
उनकी चप्पलें
जैसा बचपन में करता
जब नहीं चाहता
कोई जाये
घर से...
ekdam natural
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जवाब देंहटाएंmarmik
जवाब देंहटाएंरोकना
जवाब देंहटाएंएक सहज क्रिया है
बढिया
Waah bahut badhiya
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