‘अखराई’ में इस बार साझा कर
रहा अपनी यह कविता ‘फिर बरसी बौछार’
~ प्रेम रंजन अनिमेष
फिर बरसी बौछार...
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फिर सावन रुत आई
कैसी
बदली छाई
सिहराये पुरवाई
सिहराये पुरवाई
भीगी भरी जुलाई
इसी महीने के आखिर में
माई तेरी हुई विदाई
याद दिलाने शायद ये ही
दे बौछार दुहाई
देख धरा हरियाई
किलक रही बिरवाई
दूर भले हो जाये माँ
पर होती कहाँ पराई
यह भी इक सच्चाई
जिनगी दुख की जाई
जानो
पीर पराई
सींच सेंत अच्छाई
जहाँ कहीं ममता लहराई
जीती जगती माई... !
जहाँ कहीं
देख वहीं है माई
मह मह नेह नहाई जीती जगती माई... !
~ प्रेम रंजन अनिमेष
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