'अखराई' में इस बार प्रस्तुत
कर रहा बहनों से जुड़ी अपनी कुछ कवितायें ।
विश्वास है पसंद
आयेगी ।
शुभकामनाओं सहित
~ प्रेम रंजन अनिमेष
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बहनें : कुछ कवितायें...
बहनें : कुछ कवितायें
~ प्रेम रंजन अनिमेष
1
अपना घर
जन्म से जो था
उसका भी
आज बस हमारा
चाहे किसी
मुश्किल में ही
क्यों न हो
कहने के लिए भी
कहते नहीं
बेहिचक
बेझिझक चली आओ
इसे अपना ही
घर समझो...
2
बहन का घर
रास्ते में
पड़ता है
घर बहन का
पर गुजर जाते
अकसर उधर से
इसी तरह
चुपचाप
मिले बिना
बगैर खबर किये
अपना
या दुनिया का
कोई काम देखते
बहनें हमारे रास्ते
में
नहीं आतीं...
बहन के घर
मैं तो हुई तबाह
तबाह
कुछ भी करने देते
हैं कब
ये शैतान तीन तीन
फिर भी कैसे कैसे कर
के
कुछ मीठा कुछ कुछ
नमकीन
देखो बना रखा था आकर
तुम पाओगे
जाने लगा किस तरह मन
में
तुम आओगे
लाती बहन थाल में
क्या क्या
खाता खूब सराह
सराह...
4
बहन का रास्ता
संगिनी वाम
तो माँ जैसे
हो गयी दक्षिण
बहनें जाने
चल रहीं कबसे
बुद्ध की तरह
बरतते बताते
निभाते दिखाते
रास्ता
बीच का...
5
बात हक की
माँ बहनों के
हक हिस्से का
दूध दही
छाछ मक्खन घी
हक लगाते
जो हुए बड़े
बात करते
उनके हक की
क्योंकि बात भी
कर सकते वही...
6
बहन का सवाल
माँ के
बाद हूँ
इसलिए
नहीं पूछते ?
संगिनी सहधर्मिणी से
पहले
फिर भी ?
यह सवाल है
हर बहन का
जिसे किसी ने
नहीं पूछा...
प्रेम रंजन अनिमेष
मार्मिक। बहनों के बहाने स्त्री की स्थिति बयां करती कविताएं।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद !
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