जीवन
जग में अजस्र रंग उमंग तरंग राग अनुराग लास रास उल्लास जगाने जुगाने और प्रेम भाव
समरसता जोड़ने जुड़ने वाले रंगोत्सव के महापर्व की ढेरों बधाइयों और शुभकामनाओं के
साथ ' अखराई '
में इस बार साझा कर रहा ' रंगपर्व ' शृंखला की अपनी तीन कवितायें । विश्वास है पसंद आयेंगी । प्रतिसाद की
प्रतीक्षा रहेगी । स्नेह संवाद बना रहे ...
*प्रेम रंजन अनिमेष*
प्रेम रंजन अनिमेष
रंगपर्व : तीन कवितायें
~ प्रेम रंजन अनिमेष
*1*
*जीवन रंग*
( इतने रंग कितने रंग )
~ *प्रेम रंजन
अनिमेष*
रानी धानी धूसर गंदुमी
चंपई गुलाबी टेसू केसर कचनार
जामुनी जाफरानी कत्थई
प्याजी फिरोजी...
कुछ देर सुनो
बातें औरतों की
तो रंग जाने कितने
गूँजने लगते
प्रतिबिंबित परिलक्षित होते
संग अपने जीवन के
रस गंध आस्वाद लिये
खिलते खुलते
जबकि लोग और सारे
स्याह सफेद में उलझे
भूल चुके बिसरा बैठे
नाम भी रंगों के
बस याद उन्हें दहशत
बेरंग बदरंग सी नफरत
जुल्म जंग और सियासत
इश्तेहार सौदेबाजी तिजारत
होड़ आपाधापी
अफरातफरी मारामारी
कैसी कैसी
कारगुजारी
हर ओर
सन्नाटे का शोर
चुप की चीख
क्या देखना
केवल इतना
लहू जो बहा
किसका कितना ?
जो रंग खो गये
वे किन तितलियों के
सच के सपनों में
क्या उनके पर जिनके
दबे किताबों के पन्नों में
लौटायेगा कौन उन्हें
रखेगा किस तरह
आगत के लिए ?
जानतीं
स्त्रियाँ ही
रंग जीवन के इतने
रंग जगत के
न जाने कितने
और जो दुनियादार
भ्रम जिन्हें कि वे ही
होशियार जानकार
रंगों से
जीवन से
अपने अपनों से
सच सपनों से
सच में
कितनी दूर... !
प्रेम रंजन अनिमेष
रंग रंग रंग
~ प्रेम रंजन अनिमेष
बचपन के खेलों में
एक था यह भी
रंग रंग रंग
तुझे कौन है पसंद ?
पूछता कोई
और दूसरा
जो दरअसल होता अपना ही
लेता किसी रंग का नाम
फिर सब जो खेल में शामिल
आसपास अपने
छू लेना होता कहीं
वह रंग उन्हें
इसके पहले
कि उस रंग का
नाम लेने वाला
बढ़ कर छू ले
वह बचपन कबका
बीत गया
और खेल भी
रंग कोई रह नहीं गया
सच्चा उस तरह
और अब छूने को पीछे
संगी साथी नहीं
समय है पड़ा
जो हुआ कहाँ
कभी किसी का
उसका छू लेना
उसकी जद में आना
यानी खेल से जाना
जीवन के
इस खेल से
बचाव यही है
कि वह छुए
इसके पहले
कोई रंग कहीं मिल जाये
मुश्किल बड़ी
कि अब रंग कोई
मिलता भी
तो छूते ही
मान जाता बुरा...
*प्रेम रंजन अनिमेष*
*मन माने की बात*
~ *प्रेम रंजन
अनिमेष*
अब भला
मानने
और मनाने वाला
कोई कहाँ
मान लिया
मन से तो
मन ली
हो ली
मानो
होली
कहीं रंग का
होना
अगर
किसी का छूना
बुरा न जाये माना
और बन सके
हिलने मिलने घुलने
खुलने खिलने का
बस कच्चा पक्का
झूठा सच्चा
एक बहाना
नेक बहाना
भला बुरा सा
लगे नहीं
कुछ कहीं
किसी दिल को
अब तो
इतनी ही
और यही
मुँहबोली
अपनी
होली...
✍️ प्रेम रंजन
अनिमेष
*जीवन रंग*
https://youtu.be/gwF2bdxZjWg?si=IfYxn5BaAozSfgH7
*रंग रंग रंग*
https://youtu.be/Bmk9PGx1nUs?feature=shared
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रंगपर्व की शुभकामनाओं सहित प्रेम रंजन अनिमेष की कविता 'जीवन रंग'। होली। रंग अबीर गुलाल।
फाग। फागुन।
होली की शुभकामनाओं सहित प्रेम रंजन अनिमेष की कविता ' रंग रंग रंग ... '। कवि के स्वर में
कवि।
✍️ प्रेम रंजन
अनिमेष
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