मंगलवार, 31 जनवरी 2017

वाग्देवी वंदना यह एक मेरी भी...





सरस्वती पूजनोत्सव की शुभकामनायें अक्षरों लेखनी और रोशनाई से जुड़े आप सबको ! जब महाविद्यालय में था उस समय महाकवि महाप्राण निराला रचित वर दे वीणावादिनी’  को अपनी धुन में पिरोया और गाया था । परंतु कोई सरस्वती वंदना स्वयं रचने का सुयोग नहीं जुट पाया था । इस वर्ष गाते गुनगुनाते एक मातृ स्तुति अपने आप बन गयी । अबकी अपनी यही रचना आपसे साझा कर रहा हूँ । तो स्वीकार करें वाग्देवी वंदना यह एक मेरी भी...

                                                           ~ प्रेम रंजन अनिमेष 

नमन हे माँ... 
  
नमन तुझको  ज्ञान दे माता
बोध  का  वरदान  दे   माता


सृजन की हो साधना अविरत
हो हृदय में  भावना  उन्नत

प्रगति का  नवगान दे माता



दूसरों का दुख  करें  अनुभव
भाव हम में यों भरें अभि‍नव

सुख स्वयं  प्रतिदान दे माता



पंथ कितना  क्यों न पथराया
पर  तुम्हारे  स्नेह की  छाया

राह  कर  आसान  दे  माता



झूठ   जितने   पंख  फैलाये
मन  न उसके  मान में आये

सत्य  का  संज्ञान  दे  माता



ज्योति तेरी  हर अमा  हर ले
और  अंतस में  प्रभा  भर दे

दमकता  दिनमान  दे  माता



हों अमित  शाश्वत सभी अक्षर
और अग जग सत्य शिव सुंदर

शुभ अशुभ का  भान दे माता



सच सहज  स्वीकार  कर पायें
सोच  को  साकार  कर  पायें

स्वप्न  का  संधान  दे  माता



स्नेहसिंचित हाथ  रख सिर पर
श्रेय  को  कर  और  श्रेयस्कर

पुण्य  का  प्रतिमान  दे  माता



और  क्या  माँगें  भला  तुझसे
ज्ञात है सब  क्या छुपा  तुझसे

 स्वयं  की  पहचान   दे  माता...

                                                                      ~   प्रेम रंजन अनिमेष

2 टिप्‍पणियां:

  1. Wishing you and group Happy Saraswati Pooja Mahotsav.
    Very nice prayer of Saraswati Maa.

    Ronu and family

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  2. बहुत सुन्दर वंदना है अनिमेष जी.

    " स्वयं की पहचान दे माता "

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