सोमवार, 28 अगस्त 2017

डोर





अखराईपर इस बार साझा कर रहा अपने कविता संग्रह अँधेरे में अंताक्षरीसे एक कविता डोर  

                         - प्रेम रंजन अनिमेष


डोर

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कंधे पर रखा किसी का हाथ
अजानी भीड़ के बीच कोई पुकार
कभी न गये शहर से एक पोस्टकार्ड
कहीं अदेखे फूटता कोई अंकुर
ओस में मुसकुराता नन्‍हा फूल


अचीन्हे शिशु की किलक
रास्ता दिखाने को उठी उँगली
खुली खिड़की से आती आँख भर रोशनी
किसी रसोई से उमगती गंध सोंधी सी
अकेली पगडंडी पर आगे चलते जाने का निशान


यही
इनमें से कोई
या कभी
मिल कर सभी
केश पकड़ कर खींचते ले आये किनारे
उदासी अवसाद विषाद के गहरे अँधेरे सागर से


फिर
जीवन के सीवान में...


                  - प्रेम रंजन अनिमेष


                      


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