नवरात्रि व विजयादशमी की शुभकामनाओं के साथ इस बार ‘अखराई’ में साझा
कर रहा हूँ अपनी कविता ‘नवरात्रि
दशरूपा...’
~ प्रेम
रंजन अनिमेष
नवरात्रि दशरूपा
µ
नवरात्रि
के दिन एक स्त्री
जल्दी
जल्दी किये जा रही
कई काम
एक साथ
जैसे
हों उसके दस हाथ
एक हाथ
से घर के देवताओं के
चरणों
से हटाती फूल
दूसरे
से पति को पकड़ाती प्याला गर्म चाय का
बिसूरते
छोटे को सँभालती तीसरे से
चौथे
से खिलाती बड़े को
पाँचवे
में लिये छुरी खट खट काटती सब्जी
छठा
बढ़ा है आँच की ओर चलाने के लिए खदकती दाल
सातवाँ
लगा रहा अगम कोनों में झाड़ू उसके बाद करना पोंछा
आठवें
से उतारती अलगनी से कपड़े सूखे
नवें
से गोत रही जिन्हें धोना अभी
दसवें
हाथ से थोपती सिर पर आँवला...
निपटा
रही भाग दौड़ कर
काम
तमाम घर संसार के
मामूली
वह स्त्री
इस तरह
जैसे भीतर उसके
उतर
आयी समायी हों कितनी शक्तियाँ दैवी
दस हाथ
फैलाये दसों दिशाओं में
समेट
रही सब कुछ जल्दी जल्दी
कि चाहती
है देखने जाये
बाहर
प्रतिबिंबों सी सजी
अपनी
ही तरह की प्रतिमायें
इससे
पहले
कि विसर्जित
हो जायें...
vaah. bahut khoob bhaiya!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बहुत बहुत ! शुभकामनायें दीपावली और आने वाले नए वर्ष के लिए !
हटाएंbahut hi badhiya
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद पड़ने और सराहने के लिए !
हटाएंइसी तरह स्नेह बनाए रखेंगे