बुधवार, 29 नवंबर 2017

एक लोरी और एक विदा गीत



'अखराई' पर इस बार अपनी एक लोरी और विदा गीत प्रस्तुत कर रहा हूँ जैसा पिछली बार वादा किया था ! ये कहानी 'तोहरी सुरतिया देख के...' का हिस्सा हैं जो कथादेश के अक्तूबर अंक में प्रकाशित हुई है । कहानी के साथ साथ लोक राग रंग लिये इन गीतों को भी सबने बहुत सराहा है और कई लोगों ने आग्रह किया इन्हें साझा करने के लिए । तो आप सबका स्नेह सिर आँखों पर रखते हुए अपनी ये दोनों रचनाएँ रख रहा हूँ आपके सामने,,,
   
                     प्रेम रंजन अनिमेष

          तोहरी सुरतिया देख के...         
µ


तोहरी सुरतिया देख के


मझधार से हम तर गइनी
जे ना करे के  कर गइनी
सगरे  उठवले  सर गइनी


तोहरी सुरतिया देख के


जी  दर्द  से  हलकान  ई
भूखल  पियासल  जान ई
फिर हो गइल  मनमान ई


तोहरी सुरतिया देख के


हर बोल  सरगम हो गइल
दुख दर्द  मौसम हो गइल
हर मार  मरहम  हो गइल


तोहरी सुरतिया देख के


दरकल  करेजवा  जोड़  के
फाटल  अँचरवा  ओड़  के
धर दिहनी  धरवा  मोड़ के


तोहरी सुरतिया देख के


जग के जहर  सब बेअसर
कर फूल  काँटन के  डगर
मर मर के हो गइनी अमर


तोहरी सुरतिया देख के...



           सगुनिया बेटी

                   µ

सौ गुन वाली सगुनिया बेटी
चलली  छोड़  अँगनवा बेटी


घर रखिह आ दुनिया रखिह
रखिह  सबके  मनवा रखिह

आपन मन  कब मनवा बेटी



पहिल संग के पहिली बतिया
हरदम  याद  रही  ई रतिया

आँखिन कोर  बिहनवा  बेटी



हँसते  रहिह   गाते  रहिह
सुन सुन के  मुसकाते रहिह

सास ननद के  तनवा  बेटी



का  सोचीं  अब  खेती बारी
तहरे  खातिर   चिंता  सारी

जिनगी  धरल रहनवा  बेटी



हो जाई  जब गोदी  हरियर
हो जइबू  तब अउरो सुन्नर

बाकी  छुपा  निसनवा  बेटी...

                    प्रेम रंजन अनिमेष




3 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद पढ़ने और सराहने के लिए !
    इसी तरह स्नेह बनाए रखेंगे

    जवाब देंहटाएं
  2. मिट्टी की सुगन्ध लिए ये दोनों रचनायें सादगी और भोलेपन के साथ मानवीय संबंधो के मिठास को जीवंत कर जातीं हैं।
    साधुवाद !!

    जवाब देंहटाएं