रविवार, 28 जनवरी 2018

नारि‍यल


'अखराई' पर इस बार साझा कर रहा हूँ नये कविता संग्रह 'बिना मुुॅँँडेर की छत' से अपनी कविता 'नार‍ियल' 

                   ~  प्रेम रंजन अनिमेष

नारि‍यल        

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देख परख कर
बजा कर भली तरह
लाये उसे घर

उसके छिलके काम आये माँजने के

पानी उसका लड़कों ने पिया छक कर

फल तो फल था
सबने बाँट लिया हिल मिल

दो आँखों एक मुँह वाले
उसके खोल का भी बना नपना
चटनी रखने की ढँकनी

कुछ भी जाया नहीं हुआ
सब काम आया चाम से अस्थियों तक

इससे अधिक क्या होगा किसी का
जीना भला सार्थक !
  

6 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थकता को परिभाषित करती सरल, सहज अभिव्यक्ति।

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  2. हमें समृद्ध करती है यह कविता।
    ● शहंशाह आलम

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  3. बड़े फ़लक़ की कविता,हर पाठ में हम इस कविता के माध्यम से उस ठोस नारियल से जीवन के लिए कुछ सीख सकते हैं।

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  4. शानदार कविता , हर लिहाज से अपनी उपयोगिता दर्शाता एक अदद नारियल

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